बालोद/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। पूरी दुनिया यह अब मान चुकी है कि भारत देश कई तरह के रहस्यों और चमत्कारों से भरा हुआ है। यहां अलग-अलग राज्यों, अलग-अलग प्रांतो में कई प्रकार के चमत्कार देखने और सुनने को मिलते है। इसी प्रकार हमारा छत्तीसगढ़ राज्य भी पीछे नहीं हैं। प्रदेश के विभिन्न इलाकों में कई प्राचीन मंदिर और मूर्तियां मौजूद है, जो आज भी इस बात के साक्षी है कि पुराणों और पौराणिक मान्यताएं कहीं न कहीं अपने जगह सहीं हैं। आज हम आपको प्रदेश के बालोद जिले में स्थित एक ऐसे ही चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे शायद जिलेवासी ही अभी उतनी अच्छी तरह नहीं जान रहें हैं। हम बात कर रहे हैं बालोद जिला मुख्यालय से लगभग 2 से 3 किलोमीटर दूर ग्राम पर्रेगुड़ा (बघमरा) में तांदुला नदी के किनारे स्थित “बाबा गुफा मंदिर” की। बाबा गुफा मंदिर के बारे में स्थानीय लोग बहुत सी बाते और चमत्कार के बारे में बताते हैं।
पूजा के दौरान दिखा माता का स्वरुप, दीवार पर लगी है फोटो :

मंदिर के देखरेख कर्ता भीमा राम पटेल बताते हैं कि एक दिन उनकी बेटी दामेश्वरी पटेल मंदिर में पूजा करने पहुंची। जब वह पूजा करने लगी तो उसे वहां देवी मां के प्रतिबिंब का एहसास हुआ। पूजा करने के दौरान दामेश्वरी पटेल ने फोटो भी खिंचवाई, जिसमे गौर से देखा गया तो पता चला की फोटो में साक्षात देवी मां दिखी। इस बात को और भी सत्य साबित करती है वहां दामेश्वरी पटेल की पूजा करते हुए लगी फोटो, जिसमे ध्यान से देखने पर माता के दिव्य रूप के दर्शन होतें हैं।
70 साल बाद पहली बार मंदिर में जली जोत :

आपको बता दें, बाबा गुफा मंदिर में शिवलिंग स्थापित है। बीच-बीच में वहां मनोकामना पूर्ण करने की इक्षा लिए लोग आतें हैं और वहां के चमत्कार देख मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। मंदिर को बने लगभग 70 वर्ष बीत चुके है और इस बार 70 साल बाद पहली बार मंदिर में जोत जलाई गई है। मान्यता यहां यह भी है कि शुद्ध मन से मनोकामना की पूर्ति के लिए जो लोग आतें हैं, उनकी मनोकामना भी समय रहते पूर्ण हो जाती है।
तांदुला नदी के बाढ़ में भी नहीं डूबता यह मंदिर, बाढ़ के दौरान हुई थी आकाशवाणी :

बाबा गुफा मंदिर के बारे में स्थानीय लोग बताते हैं कि यह मंदिर तांदुला नदी के किनारे स्थित है। बावजूद इसके तांदुला नदी में बाढ़ के दौरान आस-पास के कुछ इलाके बाढ़ में डूब जाया करते हैं। लेकिन बाबा गुफा मंदिर कभी नदी के प्रवाह में डूबता नहीं है। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि पूर्व में जब भीषण बाढ़ आई थी और लोग इलाका छोड़ निकल जाने को मजबूर हो गए थे तब मंदिर से एक गरजती हुई आवाज़ सुनाई दी। इस आवाज़ को लोग आकाशवाणी माना करतें हैं। कहा जाता है कि मंदिर के अंदर से आकाशवाणी हुई और उस आकाशवाणी में गरजते हुए आवज़ में कहा गया “यहां से भाग क्यों रहे हो? किसी को कही जाने की जरुरत नहीं है, बाढ़ गांव की तरफ नहीं आएगी।” इसके बाद ग्रामीण अपने घरों को वापस लौट गए और बाढ़ में किसी को भी क्षति नहीं पहुंची।
एक सन्यासी ने ली है यहां जीते जी समाधी :
मंदिर के देखरेख कर्ता बताते हैं कि वर्षों पहले जब इस इलाके में ज्यादा लोगों का आना-जाना नहीं होता था तब यहां एक संस्यासी बैठा करते थे और नित्यकर्म में पूजा-पाठ किया करते थे। एक समय की बात है जब उस सन्यासी ने मंदिर के अंदर अपनी समाधी बनाई और तप करते हुए समाधि में लीन हो गए।