रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। मां भगवती के 52 शक्तिपीठों में से एक दंतेश्वरी भवानी की आज दुर्गाष्टमी के अवसर पर भव्य शोभायात्रा निकलेगी। मां भगवती अपने एक हजार साल पुराने मंदिर से निकलकर रथ पर सवार होंगी और नगर भ्रमण करेंगी। माता का यह मंदिर छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में है। कहा जाता है कि यहां माता के दांत गिरे थे। इसलिए भवानी का नाम भी दंतेश्वरी पड़ गया। आमतौर पर मंदिरों में माता के दो ही नवरात्रे मनाए जाते हैं, लेकिन शंखनी-डंकनी नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में चैत्र और शारदीय नवरात्र के अलावा फाल्गुन नवरात्रों पर भी मेला लगता है, इसे फागुन मड़ई कहते हैं। वैसे तो आदिकाल से ही बस्तर के लोग मां दंतेश्वरी को कुल देवी मानते आ रहे हैं। यहां लोग कोई भी विधान माता की अनुमति के बिना नहीं करते, लेकिन बस्तर के अलावा आंध्र प्रदेश पर तेलंगाना में भी माता की काफी मान्यता है। मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्रनाथ जिया पौराणिक मान्यताओं के हवाले से बताते हैं कि विष्णु भगवान के सुदर्शन चक्र से कटकर माता सती के शरीर को 52 हिस्से हो गए, जो अलग अलग स्थानों पर गिरे थे। इनमें से माता के दांत दंतेवाड़ा में गिरे, इसलिए इस स्थान और मंदिर का नाम पड़ा। उन्होंने बताया कि बस्तर दशहरा पर्व में शामिल होने के लिए बस्तर राज परिवार के सदस्य हर साल शारदीय नवरात्र की पंचमी पर माता को न्यौता देने आते हैं। इस बार भी राजपरिवार ने पंचमी के दिन विधिवत माता का पूजन कर उन्हें दशहरा मेले में आने का न्यौता दिया है। अष्टमी पर माता अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए छत्र और डोली के साथ निकलेंगी। इस दौरन जगह-जगह उनका स्वागत और पूजन किया जाएगा।

रानी प्रफुल्ल कुमारी ने बनावाया मंदिर :
मान्यता है कि माता के मंदिर का गर्भगृह सदियों पुराना है। इस गर्भगृह के साथ अब तक कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। हालांकि मंदिर के बाहरी हिस्सों को अलग अलग समय में तत्कालीन राजाओं ने कई बार बदलवा दिया। मौजूदा मंदिर बस्तर की रानी प्रफुल्ल कुमारी द्वारा बनवाया गया है। मंदिर का निर्माण बेशकीमती इमारती लकड़ी सरई और सागौन से किया गया है। गर्भगृह के बाहर दोनों तरफ दो बड़ी मूर्तियां है। इसमें चार भुजाओं वाली मूर्ति भैरव बाबा की है। कहते हैं कि वह माता के अंगरक्षक हैं। मान्यता है कि माता के दर्शन के बाद भैरव का दर्शन करना जरूरी होता है।

जगदलपुर के रास्ते पहुंच सकते हैं मंदिर :
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में दंतेवाड़ा मंदिर तक जाने के लिए जगदलपुर से होकर जाना होता है। वैसे रायपुर से माता का दरबार सड़क मार्ग से करीब 400 किमी की दूरी पर है। इसी प्रकार हैदराबाद और रायपुर से भक्त फ्लाइट से जगदलपुर और फिर वहां से सड़क मार्ग से भी दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं। ओडीशा, तेलंगाना, और महाराष्ट्र के भक्त भी जगदलपुर, तेलंगाना के सुकमा और महाराष्ट्र के बीजापुर होते हुए दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं।

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !! You are not allowed to copy this page, Try anywhere else.