रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। प्रदेश के वनों की रक्षा और संरक्षण के लिए वन विभाग को हमेशा से सराहा गया है। वन विभाग द्वारा किए गए कार्यों की तारीफ भी होती आई है। लेकिन अब लगता है जैसे कि प्रदेश के कुछेक जिलों में वन विभाग ने अपनी आँखें या तो बंद कर ली है या तो फिर जो प्रतिबंधित लकड़ियों की तस्करी चल रही है उसे देखना नहीं चाहती। जी हाँ, राजधानी से लगे गोबरा-नवापारा क्षेत्र में वन कानूनों की धज्जियां उड़ाते आरा मिल संचालक बेधड़क प्रतिबंधित लकड़ियों की तस्करी कर रहें हैं। मामला केवल तस्करी करने का नहीं हैं, मामले में एक रोचक तथ्य भी है। तस्करी करने के बाद आरा मिल संचालक प्रतिबंधित लकड़ियों को खुलेआम अपने या किसी दूसरे के यार्ड में रख भी रहें हैं। कुछ आरा मिल संचालक तो अपने मिल से 2-3 किलोमीटर दूर गांव के अंदर बाड़ी में भी प्रतिबंधित लकड़ियों को भंडारण कर रहें हैं। धड़ल्ले से तस्करी और खुलेआम भंडारण हो रहें हैं, बावजूद इसके वन विभाग खामोश नजर आ रहा है। बता दें नयापारा क्षेत्र वन विभाग के नया रायपुर रेंज में आता है। जिस तरह से तस्करी कर के फर्नीचर बना कर बेचा जा रहा है उसे देख कर लगता है कि कुछ बड़े अधिकारी भी इस मामले से जुड़े हो सकते हैं। क्योंकि बिना किसी बड़े अधिकारी के संरक्षण के इतनी बड़ी मात्रा में तस्करी होना मुश्किल है।

आपको बता दें “द मीडिया पॉइंट (themediapoint.in)” की टीम ने नया रायपुर रेंज के अंतर्गत आने वाले गोबरा-नवापारा क्षेत्र में भ्रमण के दौरान देखा कि नवापारा क्षेत्र में बहुत से आरा मिल संचालक बिना किसी डर के बेखौफ प्रतिबंधित कच्ची कहुआ लकड़ियों की तस्करी और भंडारण कर रहें हैं। नवापारा इलाके के ग्राम तर्री, ग्राम दुलना और आस पास के इलाकों के आरा मिल संचालक वन कानूनों को ताक में रखते हुए प्रतिबंधित लकड़ियों की हेरा-फेरी कर रहें हैं।

          ज्ञात हो कि खेत के मेड़ पर कहुआ (अर्जुन) को शासन ने औषधीय मूलक पेड़ घोषित किया है। इसलिए इसकी कटाई, बिक्री या परिवहन के लिए किसान या व्यापारी को कलेक्टर से अनुमति लेना पड़ता है। बावजूद इसके मुख्यालय के नजदीक प्रतिबंधित पेड़ों की अवैध कटाई और ट्रैक्टरों से बिना ट्रांजिट पास के परिवहन किया जा रहा है। कहुआ ईमारती लकड़ी होने के कारण बाजार में इसकी डिमांड ज्यादा है। चिकना और लंबाई के साथ सीधा होने वाले कहुआ के पेड़ों से मनचाहे फर्नीचर तैयार होते है। प्रतिबंधित होने के कारण पेड़ की बिक्री भी महंगे दामों में होती है। 

       पेड़ों की अवैध कटाई ने पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। वर्षों से हो रही लगातार अवैध कटाई ने जहां मानवीय जीवन को प्रभावित किया है, वहीं असंतुलित मौसम चक्र को भी जन्म दिया है। वनों की अंधाधुंध कटाई से देश का वन क्षेत्र घटता जा रहा है। जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक है। विकास कार्यो, आवासीय जरूरतों, उद्योगों तथा खनिज दोहन के लिए भी, पेड़ों की कटाई वर्षों से होती आई है।

जिला प्रशासन, वन विभाग और राजस्व विभाग की उदासीनता की वजह से भारी मात्रा में प्रतिबंधित कच्ची कहुआ लकड़ी की कटाई कर तस्करी का काम चल रहा है। वन परिक्षेत्र में जहां भी लकड़ी की कटाई होती है वह आरआई, पटवारी और तहसीलदार को अवगत ना हो ऐसा नहीं होता है। जिस तरह से लकड़ियों की कटाई चल रही है उसे देखते हुए राजस्व विभाग भी संदेह के दायरे में नजर आ रहा है। इस मामले में डीएफओ विश्वेश्वर झा ने हमारे चैनल को बताया कि भंडारण का मामला राजस्व विभाग का होता है और जहां कटाई का कार्य जारी है वहां जल्द कार्यवाही की जाएगी। अब देखना यह है कि इस मामले पर कब संज्ञान लेकर कार्यवाही शुरू होती है। बता दें गोबरा नवापारा क्षेत्र में सुबह 4 बजे से ही तस्करी का कार्य शुरू हो जाता है जो सुबह होते तक मार्केट में बेचने के लिए उतार दिया जाता है।

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

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