नई दिल्ली/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। आसमान से पानी की जगह यदि अचानक सिगरेट और चॉकलेट गिरने लगें तो आप क्या करेंगे? आप सोच रहे होंगे कि भला ऐसा भी हो सकता है क्या? तो आपको बता देते हैं कि बिल्कुल ऐसा न सिर्फ हो सकता है बल्कि हुआ भी है, आज से ठीक 59 साल पहले, तारीख 23 सितंबर ही थी, लेकिन साल था 1963, अंतर बस इतना था कि आसमान में बादल की बजाय एक पाइपर अपाचे प्लेन था। जिससे तिहाड़ जेल पर धड़ाधड़ चॉकलेट-सिगरेट की बरसात की जा रही थी। हालांकि ये बारिश महज कुछ पल की थी, क्योंकि प्लेन को लंबी दूरी तय करनी थी। प्लेन उड़ा था दिल्ली के सफरदरगंज एयरपोर्ट से और गया था पाकिस्तान के लाहौर तक।

हुआ कुछ यूं था…
अब तक आप सस्पेंस में होंगे कि बारिश सिर्फ तिहाड़ जेल पर ही क्यों हुई? और प्लेन में कौन सवार था? दरअसल प्लेन में सवार था डेनियल हैली वॉलकॉट (जूनियर), वैसे तो डेनियल एक बिजनेस मैन था और भारत को उन्होंने अपना अस्थायी घर बना रखा था, लेकिन लाहौर तक की उड़ान भरने से ठीक एक साल पहले ही उस पर हथियार स्मगलिंग करने का मुकदमा दर्ज हो चुका था, वह जेल में भी रहा था और जमानत पर बाहर आया था। हालांकि उसके देश से बाहर जाने पर पाबंदी थी, क्योंकि उसकी देश की नामी कंपनी पर देनदारी थी। वह नामी कंपनी थी टाटा ग्रुप जो डेनियल के शातिराना दिमाग का शिकार हुई थी।

कहानी पूरी फिल्मी है…
हो सकता है ये कहानी आपको फिल्मी लग रही हो, और इस कहानी का पात्र कोई जेम्स बांड, डेनियल की कहानी है ही कुछ ऐसी। 1966 में टाइम मैगजीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक डेनियल हैली वॉलकॉट का जन्म 26 नवंबर 1927 को टेक्सास में हुआ था, पिता बिजनेस मैन थे, मगर वॉलकॉट बचपन से ही किसी और ही धुन में रमा था, वह कभी खुद को एक जज का बेटा बताता था तो कभी अपने पिता का नाम ऑलिवर वॉलकॉट बताता था, ऑलिवर वॉलकॉट वही थे जिन्होंने यूएस की आजादी के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे।

अमेरिकन नेवी में करता था नौकरी :
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वॉलकॉट ने अमेरिकन नेवी में नौकरी की, इसके बाद वर्जिनिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया। मगर उसके दिमाग में कुछ और ही फितूर था, 1950 में वह सेन फ्रांसिस्को आया। 2001 में Los Angeles Times में प्रकाशित लेख में जॉय मॉजिंगो ने डेनियल को एक रहस्यमयी व्यक्ति बताया था। लेख के मुताबिक डेनियल ने यहीं एक अमीर घर की लड़की से शादी की, पांच साल बाद डेनियल ने ट्रांस अटलांटिक एयरलाइंस कंपनी खोली, जिसका मुख्य काम माल ढुलाई था, कंपनी के पास कई प्लेन थे, जिसमें से एक प्लेन पाइपर अपाचे का वह पर्सनल यूज करता था।

ऐसे जुड़ा भारत से रिश्ता :
1962 में एयर इंडिया ने अफगानिस्तान तक रेलवे कार्गो की सप्लाई करने के लिए कांट्रेक्ट निकाला जो डेनियल की कंपनी ट्रांस अटलांटिक एयरलाइंस को मिला और उसने भारत को अपना अस्थायी घर बनाया। वह दिल्ली के अशोका होटल में रहता था और यहीं से अफगानिस्तान या आसपास के शहरों-देशों में अपने पाइपर अपाचे प्लेन से आता-जाता रहा। एयर इंडिया से जुड़े होने की वजह से उस पर कोई रोक-टोक नहीं थी, इसका उसने फायदा उठाया।

वॉलकॉट के पास से मिले कारतूस :
20 सितंबर 1962 को पुलिस ने अशोका होटल के उस कमरे में छापा मारा, जिसमें वॉलकॉट ठहरा था, पुलिस को वहां से 766 कारतूस मिले। इसके बाद पुलिस ने सफदरगंज एयरपोर्ट पर खड़े वॉलकॉट के पाइपर अपाचे प्लेन में भी छापा मारा तो वहां भी कारतूस के 40 बॉक्स मिले और हर बॉक्स में 250 कारतूस थे। वॉलकॉट को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया और वहां से तिहाड़ जेल भेज दिया गया। 23 अक्टूबर को वॉलकॉट को जमानत मिल गई, जेल से बाहर आते ही उसने बाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान भागने का प्रयास किया, लेकिन पकड़ा गया। एक बार फिर उसे जेल में डाल दिया गया।

प्लेन लेकर हो गया फुर्र…
वॉलकॉट ने दूसरी योजना बनाई, ये वो दौर था जब भारत-चीन के बीच युद्ध चल रहा था। वॉलकॉट ने जज के सामने ये प्रस्ताव रखा कि यदि उसके साथ अच्छा बर्ताव किया जाए तो वह अपना प्लेन जंग में भारत की मदद के लिए दे सकता है, जज ने प्रस्ताव पर विचार किया और एक मामले में वॉलकॉट की सजा जेल में काटे गए दिनों के बराबर कर दी गई, लेकिन परेशानी अभी बाकी थी। क्योंकि वॉलकॉट टाटा ग्रुप को 60 हजार रुपये का चूना लगा चुका था और टाटा की लीगल टीम वॉलकॉट के पीछे पड़ी थी। फिलहाल वॉलकॉट को जमानत दे दी गई, लेकिन देश से बाहर जाने पर पाबंदी थी और प्लेन जब्त था। लिहाजा उसने कोर्ट से अपने पाइपर अपाचे प्लेन को हर सुबह कुछ देर स्टार्ट करने देने की अनुमति मांगी, ताकि प्लेन खराब न हो। एक कांस्टेबल के साथ वह सफरदगंज एयरपोर्ट जाने लगा। एक सप्ताह तक उसने यही किया ताकि भरोसा जीत सके। 23 सितंबर 1963 को उसने फ्यूल भरा और प्लेन स्टार्ट कर रनवे पर दौड़ा दिया। जब तक एयरपोर्ट गार्ड और कांस्टेबल कुछ समझ पाते वॉलकॉट आसमान में था।

कहानी अभी बाकी है…
कुछ महीने बाद ही 8 जून 1964 को एक प्लेन ने कराची से टेक ऑफ किया, जिसे ईरान जाना था, पाकिस्तानी एयरस्पेस से क्लीयरिंग लेने के बाद ये प्लेन अचानक भारत की ओर मुड़ गया। इसमें सवार थे कैप्टन मैकलिस्टर और कैप्टन पीटर जॉन् फिल्बी, प्लेन में थीं बेशकीमती 675 स्विस घड़ियां। प्लेन को उतारा जाना था ऐसी जगह जहां से दो लोग सिग्नल दें, लेकिन प्लान गड़बड़ हुआ और सिग्नल नहीं मिल सका, फ्यूल खत्म होने की वजह से प्लेन की आपात लैंडिंग हुई मुंबई से डेढ़ सौ किमी दूर Murud Beach पर। प्लेन का काफी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। पुलिस ने दोनों को पकड़ा, लेकिन दोनों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने शौकिया तौर पर अमृतसर से उड़ान भरी थी, लेकिन रास्ता भटक गए, दोनों ने कोर्ट में भी यही कहा और बच निकले। दोनों ने प्लेन से घड़ियां निकालीं और मुंबई गए और वहां से अपने नाम के फर्जी पासपोर्ट के जरिए पाकिस्तान की फ्लाइट पकड़ी और वहां से ईरान होते हुए लंदन चले गए।

खाली हाथ लौटे हंटर विमान :
सफदरगंज एयरपोर्ट से प्लेन को टेकऑफ करने के बाद वॉलकॉट सीधे तिहाड़ जेल के ऊपर पहुंचा और वहां सिगरेट-चॉकलेट की बारिश की। कुछ देर बाद ही वह पाकिस्तान की ओर प्लेन लेकर चल निकला। उस वक्त इंडियन एयरफोर्स के दो हंटर विमानों ने उसका पीछा भी किया, लेकिन ये विमान 55 मिनट बाद उड़ान भर सके थे, इसलिए इनके पहुंचने से पहले ही वॉलकॉट पाकिस्तान की सीमा में पहुंच चुका था।

फिल्बी ही वॉलकॉट था :
न्यूज वेबसाइट स्क्रॉल.इन के मुताबिक लंदन पहुंचने के बाद कैप्टन मैकलिस्टर का ईमान जागा और उसने स्विस एंबेसी में जाकर अपना गुनाह कबूला और अपने पार्टनर के कारनामों के बारे में भी बताया। स्विस दूतावास ने भारतीय अधिकारियों को ही ये जानकारी दी कि जिसे वे कैप्टन पीटर जॉन् फिल्बी समझ रहे थे, असल में वो डेनियल हैली वॉलकॉट जूनियर ही था। यह मसला उस समय संसद में भी उठा था। कुछ अधिकारी जांच के लिए लंदन भी भेजे गए थे।

कानून के हाथ लंबे होते हैं…
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के हाथ से दो बार निकल जाना कोई आसान बात तो थी नहीं, लिहाजा डेनियल वॉलकॉट को लगा कि वह तीसरी बार भी इसमें सफल हो जाएगा। मद्रास कोर्ट में वॉलकॉट की ओर से दाखिल दया याचिका के मुताबिक (इसके कुछ हिस्से इंटरनेट पर उपलब्ध हैं) 31 दिसंबर 1965 को वह तीसरी बार कोलंबो के रास्ते चेन्नई आया और ब्रिटिश पासपोर्ट दिखाते हुए अपना नाम बैरी फिलिप चार्ल्स बताया। एयरपोर्ट से उसे जाने तो दिया गया, लेकिन उस पर शक हो चुका था, वॉलकॉट मामले की जांच सीबीआई पहले से कर रही थी। चेन्नई के होटल में ठहरने के बाद वह मुंबई गया। यहां सीबीआई ने शक के आधार पर उसे गिरफ्तार किया। फिंगर प्रिंट मिलने पर सीबीआई का शक यकीन में बदला और लंदन से जानकारी की गई। वहां से जानकारी मिली की वॉलकॉट जिस नाम के पासपोर्ट पर भारत आया है, उस व्यक्ति की मौत 1940 में ही हो चुकी थी।

कोर्ट ने सुनाई थी सात साल की सजा :
डेनियल हैली वॉलकॉट ने ये माना कि उसने फर्जी तरह से पासपोर्ट बनवाया था। अदालत में मामले की सुनवाई हुई और वॉलकॉट को अलग-अलग मामलों में सात साल की सजा सुनाई गई। 2 अगस्त 1967 को उसने मद्रास में के रेड्डी की अदालत में सजा कम करने की अपील की, लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। बाद के दिनों में वह खुद को CIA एजेंट बताता था, हालांकि कभी इसकी पुष्टि नहीं हुई, साल 2000 में उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

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