बिलासपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जहां विद्युत वितरण कंपनी (सिटी सर्किल) को नगर निगम से 230 करोड़ रुपये से अधिक की बकाया राशि अब तक नहीं मिली है। हैरानी की बात यह है कि यह बकाया बीते डेढ़ साल से जमा नहीं किया गया है। वहीं सिटी सर्किल की कुल बकाया राशि 290 करोड़ 58 लाख रुपये तक पहुंच चुकी है, जिसमें अकेले नगर निगम का हिस्सा सबसे बड़ा है।
हर महीने दो करोड़ का नया बिल, कोई भुगतान नहीं :
नगर निगम द्वारा कार्यालय, स्ट्रीट लाइट, वाटर वर्क्स, सामुदायिक भवनों और गार्डनों के लिए विद्युत कनेक्शन लिए गए हैं। इन सभी कनेक्शनों के एवज में कंपनी हर महीने लगभग 2 करोड़ रुपये का बिजली बिल भेजती है, लेकिन लगातार अनदेखी की जा रही है। नतीजतन, हर महीने बकाया में करीब एक करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो रही है। इसमें सरचार्ज भी जोड़ा जा रहा है जिससे राशि और अधिक हो रही है।
वित्तीय वर्ष में भी नहीं दिया एक रुपया, कोविड में भी भुगतान बंद :
पहले के वर्षों में नगर निगम वित्तीय वर्ष के अंत में नगरीय निकाय मंत्रालय के माध्यम से कुछ राशि (10-15 करोड़) विद्युत वितरण कंपनी को अदा करता था, लेकिन इस बार एक रुपया भी नहीं दिया गया। गौरतलब है कि कोविड काल के दो वर्षों में भी बिजली बिल का कोई भुगतान नहीं हुआ था। यह सरकारी उपेक्षा अब कंपनी की वित्तीय हालत पर भारी पड़ रही है।
सरकारी विभाग और आम उपभोक्ता भी बकायेदार :
सिटी सर्किल क्षेत्र में पूर्व और पश्चिम बिलासपुर के कुल सात जोन आते हैं। वहां अलग-अलग उपभोक्ता वर्ग के बकाया में इजाफा हो रहा है। आंकड़ों के मुताबिक—
नगर निगम: ₹230.47 करोड़
सरकारी विभाग: ₹16.52 करोड़
अन्य उपभोक्ता: ₹43.59 करोड़
कुल बकाया: ₹290.58 करोड़
बकाया वसूली पर जारी है अभियान, लेकिन असर नहीं :
विद्युत वितरण कंपनी लगातार वसूली अभियान चला रही है, लेकिन इसके बावजूद स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। कंपनी का कहना है कि नगर निगम जैसे सबसे बड़े उपभोक्ता से ही यदि बिल न मिले, तो बाकी उपभोक्ताओं से वसूली का क्या असर होगा?
निगम टैक्स वसूलता है, फिर क्यों नहीं चुकाता बिजली बिल?
शहरवासियों से सालाना करोड़ों रुपये टैक्स के रूप में वसूलने वाला नगर निगम आखिर बिजली बिल की अदायगी क्यों नहीं कर पा रहा है? यह सवाल अब जनप्रतिनिधियों से लेकर आम जनता तक के बीच चर्चा का विषय बन गया है। सरकार और निगम प्रशासन को यह समझना होगा कि सार्वजनिक सुविधाओं की जिम्मेदारी से भागना केवल आर्थिक नहीं, नैतिक और प्रशासनिक विफलता भी है। अगर जल्द समाधान नहीं निकाला गया, तो बिजली सेवा बाधित होने जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं।