रायपुर। द मीडिया पॉइंट। डेस्क। राजद्रोह और देशद्रोह, दोनों दो अलग-अलग जुर्म हैं। कई बार अनेक लोग दोनों को एक ही मान लेते हैं। अब विधि आयोग ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि राजद्रोह कानून बनाए रखे। इसे समाप्त करने का कोई औचित्य नहीं है। आयोग ने इस मामले में सजा को बढ़ाने का सुझाव दिया है। विधिआयोग का मानना है कि अभी इस कानून में जो सजा तय है, वह पर्याप्त नहीं है।

राजद्रोह और देशद्रोह में कितना अंतर?
सरकार विरोधी बातें लिखना, बोलना, समर्थन करना, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करना, संविधान को नीचा दिखाना आदि राजद्रोह है। अगर कोई व्यक्ति देश विरोधी संगठन के साथ में किसी तरह का संबंध रखता है तो यह भी राजद्रोह है।

वहीं, देश के ख़िलाफ़ किसी भी गतिविधि में शामिल होकर ऐसे किसी संगठन से संपर्क रखना, आतंकी विचारधारा वाले व्यक्ति या संगठन से संपर्क रखना, युद्ध या उससे जुड़ी गतिविधियों में सहयोग करना भी देशद्रोह की श्रेणी में आता है। सरकार को क़ानूनी रूप से चुनौती देना भी देशद्रोह की श्रेणी में आता है।

क्यों सजा बढ़ाने की तैयारी?
राजद्रोह और देशद्रोह में जमीन-आसमान का अंतर है। कुछ याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में राजद्रोह कानून के तहत आईपीसी की धारा 124 ए को स्थगित करते हुए आदेश दिया था कि अब से राजद्रोह के तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया जाएगा, जब तक इसे री-एग्जामिन न कर लिया जाए। यह जिम्मेदारी विधि आयोग यानी लॉ कमीशन के पास थी।

कमीशन के मुखिया ऋतुराज अवस्थी ने केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट इसी हफ्ते सौंपी है। आयोग का कहना है, भारतीय दंड संहिता की धारा 124-A को IPC में बनाए रखने की जरूरत है। इसको हटाने का कोई ठोस कारण नहीं है। सजा का प्रावधान बढ़ाया जाए, अभी तीन साल की सजा और अर्थदंड की व्यवस्था है। आयोग ने कहा है भारत की एकता, अखंडता और आंतरिक सुरक्षा के लिए यह कानून जरूरी है। इस कानून को समाप्त करने का मतलब जमीनी हकीकत से मुंह मोड़ना होगा।

सरकार को सौंपी रिपोर्ट में लॉ कमीशन ने कहा, हम सिफारिश करते हैं कि धारा 124-A के तहत देने वाली सजा को IPC के आर्टिकल छह के तहत अन्य अपराधों के साथ समानता में लाया जाए। राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकने हेतु केंद्र सरकार आवश्यक दिशानिर्देश जारी करे। भारत के 22वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी ने कहा है कि हमने राजद्रोह से संबंधित कानून और भारत में इसके उपयोग की उत्पत्ति का पता लगाने हेतु अध्ययन किया। आजादी से पहले और आजाद भारत, दोनों में राजद्रोह के इतिहास, विभिन्न न्यायालयों में राजद्रोह पर कानून और विषय वस्तु पर सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों का भी विश्लेषण किया है।

केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि सरकार इससे जुड़े सभी पक्षों से बात करके अंतिम फैसला लेगी। हाल ही केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि संसद के मानसून सत्र में इस संबंध में बिल लाया जा सकता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट अगस्त के दूसरे हफ्ते में सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या राजद्रोह पर 1962 के पांच जजों के फैसले की समीक्षा के लिए सात जजों के संविधान पीठ भेजा जाए या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि इस मामले में उसका क्या रुख है?

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत पांच पक्षों की तरफ से राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आज इस कानून की जरूरत नहीं है।

सरकार और सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला क्या आएगा, इसका फैसला सरकार और सुप्रीम कोर्ट करेंगे, यहां देश के जागरूक नागरिकों के लिए यह जानना जरूरी है कि राजद्रोह और देशद्रोह दो अलग-अलग जुर्म हैं। भारतीय दंड संहिता में इनके लिए अलग-अलग धाराएं तय हैं।

दोनों में कितनी सजा मिलती है?
राजद्रोह में आईपीसी की धारा 124 ए लगती है और देशद्रोह में आईपीसी की धारा 121 लगाई जाती है। राजद्रोह में सजा का प्रावधान मामूली है जबकि देशद्रोह में आजीवन कारावास से लेकर फांसी तक हो सकती है। राजद्रोह एवं देशद्रोह में शामिल व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता, उसे पासपोर्ट नहीं मिल सकता।

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

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