इंफाल/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। मणिपुर में तीन मई को एक प्रदर्शन से शुरू हुआ बवाल इतना बड़ा रूप ले लेगा इसका अंदाजा शायद किसी को नहीं था। लेकिन आज की तस्वीर हम सबके सामने है। राज्य पिछले कई महीनों से हिंसा की आग में सुलग रहा है। हर तरफ दंगे, आगजनी, अफरा-तफरी का माहौल है। हालात तब और बिगड़ गए जब उग्र भीड़ का कुकी समुदाय की दो महिलाओं को निवस्त्र कर घुमाने का वीडियो सामने आया। इस दौरान एक महिला का गैंगरेप भी किया गया। इस वीडियो के सामने आते ही पूरे देश में गुस्सा भड़क उठा। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से इस्तीफे की मांग की गई। केंद्र सरकार ने तेजी से कार्रवाई करते हुए आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया लेकिन कांग्रेस फिर भी इस पूरी हिंसा का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ती नजर आई। अब इसी हिंसा की गूंज संसद में सुनाई दी। दरअसल विपक्ष ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जिसपर तीखी बहस हुई।
कांग्रेस मणिपुर हिंसा को लेकर केंद्र पर हमलावर थी। केंद्र सरकार भी हर सवाल का जवाब कांग्रेस को उसी की भाषा में देती दिखी। इसी कड़ी में जब कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने मणिपुर हिंसा को लेकर पीएम मोदी को घेरा तो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को साल 1993 में हुए मणिपुर दंगों की याद दिला दी। उन्होंने कहा कि आप शायद भूल गए हैं कि साल 1993 में जब मणिपुर जल रहा था, उस वक्त आपकी सरकार ही केंद्र और राज्य में थी। उन्होंने कहा, मणिपुर के सांसद ने रोते-रोते संसद में कहा था कि राज्य सरकार कुछ नहीं कर सकती। उसके पास फंड नहीं है। उसके पास हथियार खरीदने के भी पैसे नहीं हैं। कृपया ये मान लीजिए कि मणिपुर भारत का ही हिस्सा है।

जब कई महीनों तक जला मणिपुर :
सिंधिंया जिन दंगों की बात कर रहे थे वो कुकी और नागा समुदायों के बीच एक विवाद के चलते हुए थे। इस दौरान मणिपुर कई महीनों तक हिंसा की आग में झुलसता रहा जिसमें 10-20 नहीं बल्कि सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने भी शुक्रवार को इस हिंसा का जिक्र करते हुए कहा कि, ” 1993 में कुकी नागा की हिंसक झड़प में 750 लोग मारे गए, तब गृह राज्य मंत्री ने ही संसद में जवाब दिया था ना की प्रधानमंत्री या गृह मंत्री ने। ” आइए समझते हैं क्या थी उन दंगों की वजह और कैसे मणिपुर इस हिंसा में सुलगता रहा।
ये सच है कि मणिपुर में इस साल भड़की हिंसा पहली बार नहीं थी बल्कि पहले भी राज्य इससे कही ज्यादा दर्दनाक हिंसा झेल चुका है। लेकिन तब ना तो इंटरनेट था और ना ही ऐसा कोई समाचार चैनल जो 24 घंटे इन दंगों को कवर करता। यही वजह थी कि आज भी कई लोग इस हिंसा से अनजान हैं।

गांव के गांव तबाह :
ये हिंसा उस वक्त हुई जब राज्य में नागा और कुकी समुदाय के लोग आमने-सामने आ गए। इस दौरान इतने भीषण दंगे हुए कि सैकड़ो लोगों की मौत हो गई और सैंकड़ों घायल हो गए। हिंसा के दौरान जनवरी से सितंबर तक 700 लोगों की मौत हुई जबकि 200 लोग घायल हुए थे। इसके अलावा 1200 घर आग के हवाले कर दिए गए थे और 3500 लोग शरणार्थी बन गए। गांव के गाव जला दिए गए। कई लोगों को विस्थापित होना पड़ा। हालात इतने बिगड़ गए कि शरणार्थी शिविरों तक को खाली करा दिया गया। लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बार-बार उन्हें एक जगह से दूसरी जगह भेजा गया। ये विवाद आगे भी जारी रहा।
क्या था विवाद?
मणिपुर में तीन समुदाय हैं, मैतेई, नागा और कुकी। ज्यादातर कुकी और नागा ईसाई हैं। साल 1993 में दोनों समुदायों के बीच विवाद तब शुरू हुआ जब नागाओं ने दावा किया कि कुकी समुदाय ने नागा समुदाय की भूमि पर अतिक्रमण कर लिया है। इसकी एक बड़ी वजह ये थी कि नागा हमेशा से ही कुकी को विदेशी मानते थे। हालांकि कुछ कुकी तब से मणिपुर में रह रहे थे जब 18वीं शताब्दी में उन्हें बर्मा के चिन हिल्स में उनकी जमीनों से बाहर निकाल दिया गया था।
शुरुआत में मैतेई राजाओं ने इन्हें मणिपुर की पहाड़ियों में ये सोचकर बसाया कि वे इंफाल घाटी में मैतेई और घाटी पर आक्रमण करने वाले नागाओं के बीच एक बफर के रूप में काम करेंगे। बाद में, नागालैंड में विद्रोह के दौरान, नागा उग्रवादियों ने दावा किया कि कुकी उन क्षेत्रों में बसे थे जो उनके अलग नागा राज्य का हिस्सा होना चाहिए थे।

महिलाओं ने उठाए हथियार :
इस छोटी सी चिंगारी से आग इतनी भड़क गई कि दोनों समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। गांवों के गावों तबाह कर दिए गए। नागा कुकी पर और कुकी नागाओं पर घात लगाकर हमले करने लगे। कुकी समुदाय नागाओं के कई गावों को आग के हवाले कर चुके थे वहीं नागा भी पलटवार कर रहे थे। नागाओं के हमलों में 100 से ज्यादा कुकी मारे गए। आखिर में नागाओं का मुकाबला करने के लिए महिलाओं ने भी हथियार उठा लिए। हिंसा के दौरान सत्ता पर काबिज थी कांग्रेस की सरकार और प्रधानमंत्री थे नरसिम्हा राव।
राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग :
हिंसा की खबर राजनीतिक गलियारों में आते ही राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग उठी। हैरान करने वाली बात ये थी कि मणिपुर में भी कांग्रेस की ही सरकार थी और राजकुमार दोरेंद्र सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। हिंसा के दौरान हालातों का जायजा लेने के लिए तब गृह राज्य मंत्री राजेश पायलट तीन घंटे के मणिपुर दौरे पर गए थे जिसमें से वह केवल एक घंटे का दौरा ही कर सके थे। उस वक्त उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार कानून व्यवस्था लागू करने में फेल हो गई। मंत्रिमंडल की सिफारिश पर प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश की, जिसके बाद राज्य में 9वीं बार राष्ट्रपति शासन लगा जो 31 दिसंबर 1993 से लेकर 13 दिसंबर 1994 तक लागू रहा।