रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। प्रदेश के संचालन और प्रदेशवासियों के विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा बहुत से विभाग बनाए गए है। इन विभागों के द्वारा योजनाओं को संचालित कर लोगो को लाभान्वित किया जाता है। ऐसा ही एक विभाग है छत्तीसगढ़ मछलीपालन विभाग, जिसमे मछलीपालन से जुड़े योजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है। लेकिन इस विभाग में शासकीय मद से राशि गबन का अनोखा खेल चल रहा है। इस खेल में करोड़ों रूपए का हेरफेर किया गया है जिसमे सहायक संचालक समेत स्वयं इस विभाग के डायरेक्टर की भी भागीदारी नज़र आ रही है।
यह है पूरा मामला :
दरअसल, प्रदेश के दो जिलों (नारायणपुर/कोंडागांव) में मछलीपालन विभाग के शासकीय खाते से 1 करोड़ 25 लाख 58 हज़ार 994 रूपए की राशि शासकीय मद से व्यक्तिगत खाते में आहरण किया गया है। जो कि पूर्णतः अशासकीय कार्य है। इस मामले में सहायक ग्रेड 2 के एक कर्मचारी का नाम सामने आ रहा है, जिसे केवल हम एक मोहरे के रूप में देख सकते है। जिला नारायणपुर में मछलीपालन विभाग के खाते से 81 लाख से ज्यादा की राशि व्यक्तिगत खाते में डाली गयी है और जिला कोंडागांव में 43 लाख से अधिक की राशि व्यक्तिगत खाते में डाली गयी है। राशि गबन का पूरा खेल दो लोगों के इर्द-गिर्द घूम रहा है। वह है, सहायक ग्रेड 2 का कर्मचारी और उस वक्त जिला नारायणपुर/कोंडागांव के मछलीपालन विभाग की कमान संभाल रहे ADF (ass. director fishries) या हिंदी में सहायक संचालक (जिला विभाग प्रमुख) मान सिंह कमल।

बता दें, जांच समिति ने इस मामले में सहायक ग्रेड 2 के कर्मचारी को दोषी बताया है, लेकिन क्या बिना सहायक संचालक को बताये या बिना सहायक संचालक के हस्ताक्षर/सिग्नेचर के एक सहायक ग्रेड 2 का कर्मचारी महीनों कैसे राशि का आहरण कर सकता है? सहायक ग्रेड 2 के कर्मचारी द्वारा महीनों से शासकीय राशि का आहरण किया जा रहा था, इसके बावजूद भी सहायक संचालक को इसकी जानकारी ना हो क्या ऐसा संभव हो सकता है? इसमें प्रदेश के मतस्य विभाग के उच्च अधिकारी जो संचनालय में बैठे हैं उनकी मुख्य भूमिका सहायक संचालक (जिला विभाग प्रमुख) को बचाने में नज़र आ रही है।
एकतरफा कार्यवाही, सहायक संचालक को बचाने की कोशिश :
आपको बता दें, जांच समिति द्वारा इस तरह की एकतरफा कार्यवाही से विभाग की छवि को भी नुकसान पहुँचाने का प्रयास किया गया है। शासकीय खाते/मद से बिना सहायक संचालक (जिला विभाग प्रमुख) के जानकारी के किसी भी प्रकार के राशि का आहरण किया जाना अमूमन नामुमकिन है। तो फिर, जब सहायक ग्रेड 2 के कर्मचारी ने करोड़ों रूपए का आहरण किया तो किससे पूछकर? किसका हस्ताक्षर/सिग्नेचर लेकर? या किसके आदेश में ऐसा किया? और आखिर बिना सहायक संचालक (जिला विभाग प्रमुख) के जानकारी के इतनी बड़ी राशि का आहरण कैसे होते रहा?
इन सब वजहों को जांच समिति ने दरकिनार करते हुए इस मामले में केवल नीचे लेवल के एक छोटे कर्मचारी पर डालकर मामले को दबाने का बेहतरीन प्रयास किया है, और करें भी क्यों ना, इतनी बड़ी राशि में कुछ तो ऐसा होगा जो इन्हें यह सवाल पूछने या जांचने से रोका जा रहा होगा।
दोषी सहायक ग्रेड 2 और सहायक संचालक (जिला विभाग प्रमुख) गबन के वक्त एक साथ थे पदस्थ :
आपको बता दें, जिला नारायणपुर में कुल 6 महीने में 81 लाख से अधिक की राशि शासकीय खाते से व्यक्तिगत खाते में डाली गई और जिला कोंडागांव में एक साल के समयसीमा में 43 लाख से अधिक की राशि निकालकर दोषी सहायक ग्रेड 2 के व्यक्तिगत खाते में डाली गई है। जब करोड़ों रूपए का गबन का खेल दोनों जिलों में चल रहा था तब, दोषी सहायक ग्रेड 2 और सहायक संचालक (जिला विभाग प्रमुख) मान सिंह कमल एक साथ दोनों जगह पदस्थ थे, यानी एक साथ काम/कार्य कर रहे थे।
इस मामले पर तत्कालीन सहायक संचालक मछली पालन नरायणपुर मान सिंह कमल के उपर पर निलंबन के साथ साथ एफआईआर की कार्यवाही होनी चाहिए
जवाबदेही से बच रहे अधिकारी :
इस मामले में जब द मीडिया पॉइंट की टीम द्वारा नारायणपुर में पदस्थ वर्तमान सहायक संचालक (जिला विभाग प्रमुख) को पूछा गया तो उन्होंने सीधा कोंडागांव वाले से पूछिए और कुछ नहीं बताना कहकर अपना फोन रख दिया। इस मामले में जवाबदेही से बच रहीं है। वहीँ जब दोषी सहायक ग्रेड 2 के साथ पदस्थ रहे जिम्मेदार सहायक संचालक (जिला विभाग प्रमुख) को जब इस मामले में सवाल किया गया तो हॉस्पिटल आया हूँ बोलकर फोन इनके द्वारा काट दिया गया। इन सब के अलावा जब छत्तीसगढ़ मछलीपालन विभाग के डायरेक्टर नारायण सिंह नाग को सवाल किया गया तो “मैं बाहर हु, बाद में फोन लगता हूँ” कहकर फोन रख दिया गया।
इस मामले पर उच्चस्तरीय जांच की जाए तो कई बड़े अधिकारी इसके घेरे में आएंगे।