ढाका। बांग्लादेश की संस्कृति में कला और संगीत का महत्व कितना भी क्यों न हो, लेकिन यह कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों को पसंद नहीं है. वे देश में शरिया कानून लागू करना चाहते हैं, उनका मानना है कि इस्लामी निजाम आने के बाद ही लोगों को इंसाफ मिल सकता है. बांग्लादेश में इस समय ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ कट्टरपंथी मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन बन चुका है. बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसा और मंदिरों पर हुए हमलों में भी इस संगठन का नाम आया है. यह संगठन साल 2021 में पीएम मोदी की बांग्लादेश यात्रा का भी विरोध कर चुका है.
शेख हसीना की सेक्लुर नीतियों का यह संगठन घोर विरोधी रहा है, क्योंकि बांग्लादेश में यह सरिया कानून लागू कराना चाहता है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में संगठन से जुड़े अबुल फैयाज मोहम्मद खालिद हुसैन धार्मिक मामलों के सलाहकार हैं. दैनिक भास्कर ने ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ के वाइस प्रेसिडेंट मुहिउद्दीन रब्बानी से बात की है. रब्बानी भारत में देवबंद से पढ़े हैं, यह संगठन अहमदिया मुसलमानों को भी काफि मानता है.
रब्बानी ने बताया कि उनका संगठन इस्लाम की हिफाजत के लिए और दीन की शिक्षा लोगों तक पहुंचाने के लिए इंटरनेशनल लेवर पर काम करता है. सगंठन चाहता है कि बांग्लादेश में इस्लामी निजाम कायम हो और लोगों को इंसाफ मिले. रब्बानी ने कहा कि देश में मूर्ति का निर्माण नहीं होना चाहिए, जिन मूर्तियों को बनाया गया है, उन सबको सरकार को तोड़ देना चाहिए. फिलहाल, कैमरे के सामने रब्बानी ने कहा कि मंदिरों की मूर्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए. रब्बानी ने कहा कि शेख मुजीबुर रहमान की देशभर में बनी सभी मूर्तियों समेत देश की सभी मूर्तियों को तोड़ देना चाहिए.
कट्टरपंथी संगठन ने कहा कि हमें संगीत और कला बिल्कुल पसंद नहीं है, इसलिए निजामी शासन में ये नहीं चलेगा. महिलाओं को हिजाब के अंदर रहना चाहिए. रब्बानी ने भारत के हिंदुओं से अपील करते हुए कहा कि जैसे हम बांग्लादेश में मंदिरों की सुरक्षा कर रहे हैं, वैसे ही आप भारत में मुसलमानों और उनके धर्म की रक्षा करें. संगठन ने देश की अंतरिम सरकार को लेकर कहा कि अभी तो यह नई-नई बनी है, देखते हैं क्या करती है. हम नई सरकार चुनकर लाएंगे, उसका देश पर शासन होगा.