नई दिल्ली/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। दशहरे के पर्व पर क्रिकेटर मोहम्मद शमी को बधाई देना कुछ लोगों का रास नहीं आया। मोहम्मद शमी की ओर से दशहरे की शुभकामनाएं देने के बाद उनके खिलाफ फतवा जारी करने की धमकी दी जा रही है। वैसे तो ऐसे पहले भी कई क्रिकेटर्स के साथ ऐसा हो चुका है। कई बार कट्टरपंथियों की ओर से अलग-अलग हस्तियों के खिलाफ फतवा जारी कर दिया जाता है। ऐसे में सवाल है कि आखिर ये फतवा क्या है? तो जानते हैं आजकल अक्सर चर्चा में रहने वाला फतवा क्या होता है, कौन जारी करता है और अगर फतवा जारी करने के बाद भी कोई धार्मिक गुरुओं की बात ना माने तो क्या हो सकता है। समझते हैं फतवे से जुड़ी हर एक बात और इस्लाम में फतवे का कितना महत्व है और इसके क्या मायने है।

क्या होता है फतवा?
फतवा एक अरबी का शब्द है। इस्लाम से जुड़े किसी मसले पर कुरान और हदीस की रोशनी में जो हुक्म जारी किया जाए वो फतवा है। वैसे तो इसका मतलब होता है किसी निर्णय पर मुस्लिम लॉ के हिसाब से नोटिफिकेशन जारी करना। आसान भाषा में समझें तो अगर इस्लाम के नियमों के हिसाब से किसी को कोई राय दी जाए, तो उसे फतवा कहा जाएगा। फतवा कुरान, हदीस में बताए गए नियमों के अलावा मोहम्मद साहब, किसी खलीफा, इमाम या फिर आलिमे दीन की ओर से पुराने फैसले पर भी आधारित हो सकता है। अगर कोई इस्लाम के हिसाब से गलत करता है तो उसे इस्लाम के नियमों के हिसाब से राय दी जाती है।

कौन जारी कर सकता है?
आजकल देखने को मिल रहा है कि कोई मौलवी, किसी के खिलाफ कुछ बयान दे देते हैं तो उसे फतवा मान लिया जाता है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, ये बात स्पष्ट है कि हर को कोई व्यक्ति फतवा जारी नहीं कर सकता है, यानी फतवा हर मौलवी या इमाम जारी नहीं कर सकता है। फतवा सिर्फ इस्लाम का जानकार ही जारी कर सकता है। फतवा कोई मुफ्ती ही जारी कर सकता है और मुफ्ती बनने के लिए इस्लाम की पढ़ाई जरूरी है।

कैसे जारी किया जाता है?
इस्लाम के जानकारों के आधार पर लिखी गई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि फतवा देने के लिए एक अथॉरिटी होती है, जो पूरी तरह से विचार करने के बाद फतवा जारी करती है। फतवा एक तरह से सवाल का जवाब होता है और ऐसे में किसी भी शख्स के बयान को फतवा नहीं माना जा सकता है। जैसे दारुल उलूम देवबन्द और इमारत शरिया या मुंबई की रजा अकादमी फतवा जारी कर सकती हैं। बता दें कि ईरान, सऊदी अरब और मिस्र जैसे मुस्लिम देशों में फ़तवा देने वाले आलिमों और संस्थाओं को सरकारी मान्यता होती है।

कोई फतवे को ना माने तो क्या होगा?
अगर कानून के हिसाब से देखें तो भारत जैसे देश में इस्लामी क़ानून को लागू करवाने के लिए किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में यह व्यक्ति की अपनी राय है कि किस तरह से उसे अपनाता है। यह सिर्फ एक मुफ्ती की रायभर है, इसलिए इसे मानना या ना मानना किसी भी व्यक्ति पर निर्भर करता है। फतवा एक राय है उसको वैसे ही देखना चाहिए। हालांकि, शरिया कानून से चलने वाले देशों में ही फतवे का महत्व होता है और इसे कुछ स्थितियों में कानून तौर पर लागू भी करवाया जा सकता है।

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

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