जयपुर/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। एक ऐसी शादी जिसमें बैंड बाजा बारात है, तमाम रीति रिवाज के सारी रश्में निभाई गई, लेकिन दूल्हा नजर नहीं आया। एक युवती ने भगवान से शादी करके सबको हैरान कर दिया।
कलयुग की मीराबाई देख लोग हैरान :
मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई…. यह पढ़कर हमें मीराबाई की याद आती है। कृष्ण भक्त मीरा ने कृष्ण को ही अपना सबकुछ मान लिया था। समाज, घर, परिवार सब कुछ त्याग कर मीरा कृष्ण में लीन हो गई थी। आज भी मीरा का भक्ति भाव हर कोई याद करता है। अब कलयुग में भी मीरा की तरह कोई विष्णु भक्त मिल जाए और विष्णु भगवान से शादी कर ले तो आप क्या कहेंगे।
20 साल की पूजा सिंह ने 8 दिसंबर रचाई ब्याह :
20 वर्षीय पूजा सिंह जयपुर की गोविंदगढ़ के पास नरसिंहपुरा गांव की रहने वाली है। पूजा सिंह ने विष्णु भगवान से शादी कर सबको हैरत में डाल दिया। 8 दिसंबर को पूजा सिंह ने विष्णु भगवान से शादी कर ली और अपनी मांग भर कर सुहागन हो गई।

शादी के बाद कोई ताना ना मारे इसलिए भगवान का थामा हाथ :
पूजा सिंह कहती हैं लोगों के तानों से परेशान थी। उसने पहले ही ठान ली थी कि उसे शादी नहीं करनी। पति पत्नी के झगड़े को देखकर उसने सोच लिया था कि मैं शादी नहीं करुँगी, लेकिन समाज में उसे लोग ताने कसने लगे। इन तानों से बचने के लिए पूजा सिंह को एक उपाय खोज लिया।
गांव के मंदिर में विराजमान ठाकुर जी को बनाया दुल्हा :
30 साल की पूजा सिंह ने गांव के मंदिर में विराजमान ठाकुर जी से शादी कर ली। ये शादी 8 दिसंबर को हुई। शादी के बाद पूजा अपने घर पर ही रहती हैं और ठाकुर जी मंदिर में पूजा उनके लिए सवेरे भोग बनाकर ले जाती हैं। उनके लिए पोशाक बनाती हैं और शाम को दर्शन के लिए जाती है।
जिदंगी खराब ना हो इसलिए चुना ऐसा वर :
पूजा सिंह बताती है ”मेरी उम्र 30 साल हो चुकी है। अमूमन 20 से 25 साल की उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है। मेरे घर में भी इसकी सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी। अक्सर रिश्ते आते रहते थे। लोग मेरे मम्मी-पापा को कहने लगे थे कि बेटी की अब तो शादी कर दो, लेकिन मेरा मन इसके लिए तैयार नहीं था। मैंने बचपन से ही देखा है कि बेहद मामूली बात पर पति-पत्नी के बीच झगड़े हो जाते थे, विवादों में उनकी जिदंगी खराब हो जाती थी और इनमें महिलाओं को बहुत ही बुरी स्थिति का सामना करना पड़ता था।”
तुलसी विवाह के बारे में सुनकर लिया फैसला :
बड़ी होने के साथ मैंने निर्णय कर लिया था कि मैं शादी नहीं करूंगी। मैं मम्मी-पापा को बता चुकी थी कि मुझे शादी नहीं करनी है, बीच में कुछ लड़के वाले देखने भी आए, एक दो बार तो रिश्ता जैसे-तैसे टल गया। इसी बीच मैंने तुलसी विवाह के बारे में सुनकर फैसला कर लिया। मैं तुलसी विवाह के बारे में सुन रखा था। एक बार अपने ननिहाल में देखा भी था। सोचा कि जब ठाकुरजी तुलसीजी से विवाह कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ठाकुरजी से विवाह कर सकती।
मैंने परमेश्वर को पति मान लिया :
मैंने इसके बारे में पंडित जी से पूछा तो उन्होंने भी कहा कि ऐसा हो सकता है। इसके बाद मां से बात की शुरू में तो वे बोली कि ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन फिर मान गई। जब हमने पापा को बताया तो वे नाराज हो गए और साफ मना कर दिया। नाराजगी के कारण पापा इस शादी में भी नहीं आए। समाज ने मजाक उड़ाया, लेकिन मैंने परमेश्वर को पति मान लिया। समाज में भी बहुत से लोगों ने सपोर्ट किया और बहुत से लोगों ने मजाक भी बनाया, लेकिन मुझे उनकी चिंता नहीं है।
दो साल से मैं यह विवाह करना चाहती थी, लेकिन आखिरकार यह अब हुआ है। मैंने परमेश्वर को ही अपना पति बना लिया है। लोग कहते थे कि सुहागन होना लड़की के लिए सौभाग्य की बात होती है। भगवान तो अमर होते हैं, इसलिए मैं भी अब हमेशा के लिए सुहागन हो गई हूं।
तीस साल की पूजा सिंह पॉलिटिकल साइंस से एम.ए. की :
तीस साल की पूजा सिंह पॉलिटिकल साइंस से एम.ए. हैं। पिता प्रेमसिंह बीएसएफ से रिटायर हैं और एमपी में सिक्योरिटी एजेंसी चलाते हैं। मां रतन कंवर गृहणी हैं। तीन छोटे भाई हैं अंशुमान सिंह, युवराज और शिवराज। तीनों कॉलेज और स्कूल की पढ़ाई कर रहे हैं। ठाकुर जी से विवाह का फैसला उनका खुद का था। शुरू में समाज, रिश्तेदार और परिवार के लोग इस पर सहमत नहीं हुए, लेकिन फिर मां ने जरुर बेटी की इच्छा का सम्मान कर सहमति दे दी थी। पिता ना पहले राजी थे और ना आज है। इसीलिए शादी में भी नहीं आए। सारी रस्में मां ने ही पूरी की।
रोज लगाती हैं मांग में सिंदूर :
शादी में परंपरानुसार दुल्हा दूल्हन की मांग सिंदूर से भरता है, लेकिन इस शादी में यह परंपरा भी कुछ अलग तरीके से हुई। ठाकुर जी की ओर से खुद पूजा सिंह ने अपनी मांग भरी। ठाकुर जी को सिंदूर से अधिक चंदन पसंद होता है, इसलिए पूजासिंह ने अपनी मांग भी सिंदूर की बजाय चंदन से भरी।
जुहारी के 11000 रुपए दिए गए :
पूजा सिंह और ठाकुर जी का यह विवाह सभी रीति रिवाजों से हुआ। बाकायदा गणेश पूजन से लेकर चाकभात, मेहंदी, महिला संगीत और फेरों की रस्में हुई। ठाकुर जी को दूल्हा बनाकर गांव के मंदिर से पूजा सिंह के घर लाया गया। मंत्रोच्चार हुआ और मंगल गीत गाए गए। पिता नहीं आए तो मां ने फेरों में बैठकर कन्यादान किया। इसके बाद विदाई हुई। परिवार की ओर से कन्यादान और जुहारी के 11000 रुपए दिए गए। ठाकुर जी को एक सिंहासन और पोशाक दी गई।
अब जमीन पर सोती हैं, रोजाना लगाती हैं भोग :
पूजा सिंह बताती हैं कि अब कोई मुझे यह ताना नहीं मार सकता कि इतनी बड़ी होकर भी कुंवारी बैठी है। मैंने भगवान को ही पति बना लिया है। शादी के बाद ठाकुर जी तो वापस मंदिर में विराजमान हो गए हैं जबकि पूजा अपने घर पर रहती है। अपने कमरे में पूजा ने एक छोटा सा मंदिर बनाया है, जिसमें ठाकुर जी हैं। वह उनके सामने अब जमीन पर ही सोती है। रोजाना सवेरे सात बजे मंदिर में विराजमान ठाकुर जी के लिए वह भोग बनाकर ले जाती हैं। जिसे मंदिर के पुजारी भगवान को अर्पित करते हैं। इसी तरह वह शाम को भी मंदिर जाती हैं।
पंडित ने बताया विवाह मान्य है :
धार्मिक रूप से यह विवाह मान्य आचार्य राकेश कुमार शास्त्री ने बताया कि भगवान विष्णु शालीग्राम जी से कन्या का विवाह शास्त्रोक्त है। जिस तरह से वृंदा तुलसी ने विष्णु भगवान का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए ठाकुर जी से विवाह किया है, यह ठीक वैसे ही है। पहले भी ऐसे विवाह होते आए हैं। कर्मठगुरु पुस्तक में विवरण पृष्ठ संख्या 75 पर दिया गया है। विष्णु भगवान से कन्या वरण कर सकती है। तुलसी विवाह भी इसी प्रकार का पर्याय है।