कोलकाता/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। नेताजी की जयंती पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत को बड़ी टिप्पणी करते सुना गया। आज आरएसएस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन पर कोलकाता के शहीद मीनार में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया। इस अवसर पर मोहन भागवत ने कहा कि, “देश के लए हम जितना करें कम है, लेकिन बदले में हमने नेताजी को क्या दिया? हमने कुछ भी नहीं दिया। हमने नेताजी और गुरु गोविंद सिंह के साथ भी कभी न्याय नहीं किया। उन्होंने अपना परिवार ही नहीं छोड़ा, बल्कि देश के लिए आगे बढ़कर लड़ाई लड़ी। सत्ता को चुनौती दी।”
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि, “हमें नेताजी के सपने को साकार करना है। अगर किस्मत ने उनका साथ दिया होता तो वे पहले देश पर शासन कर सकते थे। मोहन भावत ने कहा कि नेताजी जो करते थे, संघ वही काम कर रहा है। नेताजी एक समृद्ध देश देखना चाहते थे। हम भी यही चाहते हैं। हमारे देश में पूरी दुनिया का नेतृत्व करने की ताकत है। हमें वह उदाहरण पेश करना होगा।
संघ की शाखाएं नेताजी के दिखाए रास्ते पर चल रहीं :
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि, “बंगाल की भावना अब देश की भावना है? नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा आरएसएस की विचारधारा से बहुत अलग नहीं है, बल्कि संघ की शाखाएं नेताजी के दिखाए रास्ते पर चलती रही हैं। बता दें कि हाल में नेताजी की बेटी अनिता बोस फाफ ने हाल ही में कहा था कि नेताजी और आरएसएस की विचारधाराएं अलग हैं। दोनों की विचारधाराओं में समानताएं नहीं है।
नेताजी की जो मंजिल थी, वही हमारी मंजिल- संघ प्रमुख :
आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा, “कभी-कभी किसी मंजिल तक पहुंचने का रास्ता सीधा होता है, कभी-कभी मुश्किल होता है। लेकिन, मंजिल हमेशा एक ही होनी चाहिए। सुभाष चंद्र बोस की मंजिल क्या थी? वह हमारी मंजिल है। हम वही करते हैं।” वहीं विश्व मंच पर भारत की स्थिति के बारे में मोहन भागवत ने कहा, “भारत एक अमर राज्य है। भारत ने पूरी दुनिया को धर्म सिखाया है। इस धर्म का एक अलग अर्थ है। यह धर्म न्याय के बारे में है। भारत दुनिया को एकता सिखाता है। हम उस भारत के निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं। दुनिया भारत की ओर देख रही है।”
भाग्य नेताजी के साथ होता तो वह बहुत आगे बढ़ जाते :
आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा, “यदि भाग्य नेताजी के साथ होता तो वह हमारे क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ सकते थे। हर रास्ता मंजिल की ओर ले जाता है। सुभाष बाबू और कांग्रेस आंदोलन भारत को एक मंच पर ले गए, लेकिन बाद में नेताजी को एहसास हुआ कि एक हथियारबंद आंदोलन की जरूरत है। सभी का लक्ष्य एक ही था। नेताजी ने उस लक्ष्य के लिए एक अलग रास्ता चुना था।