नई दिल्ली/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। राम मंदिर में रामलला की मूर्ति के लिए नेपाल की गंडकी नदी से शिलाएं लाई गई हैं। 127 क्विंटल की शिलाएं नेपाल से सड़क मार्ग से लाई गई हैं, जो जल्द ही अयोध्या पहुंचेगी। मूर्ति के लिए इस्तेमाल करने से पहले विधि विधान से इनकी पूजा की जाएगी। अब इसे लेकर कई लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। जैसे आखिर रामजन्मभूमि राम की जिस स्वरुप को प्राण प्रतिष्ठित किया जाएगा, उस स्वरुप के लिए सुदूर नेपाल से ही शिलाएं क्यों लाई गई हैं। चलिए हम आपको बताते हैं इन 6 लाख साल पुराने शालिग्राम पत्थर की खासियत।
शालिग्राम पत्थर को शास्त्रों में साक्षात विष्णु स्वरूप माना जाता है। हिंदू शालीग्राम भगवान की पूजा करते हैं। यह पत्थर उत्तर नेपाल की गंडकी नदी में पाया जाता है। हिमालय से आने वाला पानी इन चट्टानों से टकराकर पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है। इन्हीं की मूर्ति बनाकर उन्हें पूजा जाता है। वहीं, अगर विज्ञान के हिसाब के समझें तो ये पत्थर एक तरह का जीवाश्म (Fossil) है, जोकि 33 तरह के होते हैं।
इन पत्थरों को तलाशकर बनाई जाती हैं मूर्तियां :
देशभर में इन पत्थरों को तलाशकर इनकी मूर्तियां बनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पत्थर को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। मान्यता यह भी है कि इसे कहीं भी रखकर पूजने से उस जगह पर लक्ष्मी का वास होता है। 2024 की मकर संक्रांति से पहले भगवान रामलला की प्रतिमा इस पत्थर से बनकर तैयार हो जाएगी। इन पत्थरों का सीधा रिश्ता भगवान विष्णु और माता तुलसी से भी है। इसलिए शालिग्राम की अधिकतर मंदिरों में पूजा होती है और इनको रखने के बाद प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत भी नहीं होती।
इसी पत्थर से बनेगी सीता माता की मूर्ति :
भारत लाए जा रहे ये दो पत्थर 5-6 फीट लंबे और लगभग 4 फीट चौड़े हैं। इनका वजन लगभग 18 और 12 टन है। ‘राम लला’ की प्रतिमा इन चट्टानों से उकेरी जाएगी और मूल गर्भगृह में स्थापित की जाएगी। इन पवित्र चट्टानों से रामलला के साथ सीताजी की प्रतिमा भी तराश कर बनाई जाएगी। 2024 में मकर संक्रांति (14 जनवरी) को राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की नई मूर्ति स्थापित की जाएगी।