नई दिल्ली/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। भारत का मिशन चंद्रयान-3 अपनी मंजिल के करीब है। बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद पर उतरेगा, अगर सबकुछ सही रहा तो इसके कुछ देर बाद ही प्रज्ञान रोवर इससे बाहर निकलेगा और अपना काम शुरू कर देगा। भारत ने चांद पर अपना ये तीसरा मिशन भेजा है, पहले मिशन में हिन्दुस्तान ने चांद पर पानी खोज निकाला था और दूसरा मिशन सॉफ्ट लैंडिंग में फेल हो गया था। अब बारी चंद्रयान-3 की है जो सॉफ्ट लैंडिंग के करीब है।

लेकिन ये मिशन सबसे खास भी है, क्योंकि इसरो ने चांद के उस हिस्से में जाने की सोची है, जो अभी तक अछूता है। चांद के दक्षिणी ध्रुव में सूरज की रोशनी बमुश्किल पहुंचती है, कुछ हिस्सा तो ऐसा भी है जो अरबों साल से अंधेरे में ही डूबा है, ऐसे में सवाल ये उठता है कि चांद के जिस हिस्से में सूरज नहीं पहुंच पाया है, वहां चंद्रयान-3 क्यों जा रहा है।

इसरो का मिशन साउथ पोल :
दुनिया में अभी तक तीन ही देश ऐसे हैं, जिन्होंने चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की है। अमेरिका, चीन और रूस (पूर्व में सोवियत संघ) ने चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की है, अगर भारत चंद्रयान-3 में सफल होता है तो वह दुनिया का चौथा देश होगा। लेकिन बात इससे आगे की है, क्योंकि भारत चांद के उस हिस्से में सॉफ्ट लैंडिंग करवाएगा जहां कोई नहीं पहुंच पाया है। यानी भारत चांद के साउथ पोल (दक्षिणी ध्रुव) में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बनेगा।

करीब 600 करोड़ के बजट वाले चंद्रयान-3 का असली मकसद दक्षिणी ध्रुव के रहस्यों को सुलझाना ही है, अगर यहां सॉफ्ट लैंडिंग होती है तो चांद के हिस्से पर पानी के रहस्य, मिट्टी की परत, वहां के वायुमंडल के बारे में जानकारी मिलेगी जिनपर रिसर्च की जा सकेगी और भविष्य की संभावनाओं को खंगाला जाएगा।

चांद के साउथ पोल के रहस्य :
इसरो द्वारा जो चांद की तस्वीरें साझा की जाती हैं, उसमें आपने कई बार बड़े-बड़े गड्ढे देखें होंगे या कई ऊंची पहाड़ी जैसी चीज़ें दिख रही होंगी। तस्वीरों में भले ही ये छोटी नज़र आती हो, लेकिन ये काफी बड़ी हैं। बड़े-बड़े गड्ढे एक तरह से ज्वालामुखी जितनी बड़ी हैं, जबकि पहाड़ियों की ऊंचाई सैकड़ों मीटर की हैं, इन सबके बीच चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर को एक सपाट हिस्सा ढूंढना है जहां वह लैंड कर सके और उसके बाद प्रज्ञान रोवर कुछ चल सके। साउथ पोल वो हिस्सा है, जहां सूरज की रोशनी पूरी तरह से नहीं पहुंचती है।

यही कारण है कि सामान्य दिनों में चांद के इस हिस्से पर तापमान -200 से -250 डिग्री तक जाता है, हालांकि इसके कुछ हिस्से में जब सूरज का हल्का प्रभाव पड़ता है तो तापमान 50 डिग्री तक चला जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जो बड़े-बड़े गड्ढे इस हिस्से में हैं, वहां पानी हो सकता है और क्योंकि तापमान -200 डिग्री तक रहता है और हमेशा अंधेरा यहां नज़र आता है, तो यहां पानी बर्फ के तौर पर उपस्थित हो सकता है। यानी विक्रम लैंडर के भीतर मौजूद प्रज्ञान रोवर का काम इन चीज़ों को ढूंढना ही है।

चंद्रयान-3 को क्या हासिल होगा?
इस मिशन का मूल मकसद चांद के इस हिस्से में पानी ढूंढना है, ताकि अगर भविष्य में चांद पर इंसान को बसाया जाए तो उसमें आसानी पैदा हो सके। चांद पर अगर पानी मिलता है तो वैज्ञानिकों को सौर मंडल में पानी के इतिहास को पता लगेगा, साथ ही यहां पर पानी मिलने से कई अन्य रास्ते खुलेंगे। सिर्फ इतना ही नहीं चांद के इस हिस्से में पानी मिलने के अलावा हीलियम, ईंधन और अन्य मेटल भी मिल सकते हैं। ये सभी धातु ना सिर्फ चांद पर बल्कि धरती पर वैज्ञानिकों के काम आएंगे, इनमें न्यूक्लियर क्षमता, टेक्नोलॉजी से जुड़े क्षेत्र में फायदे हो सकते हैं।

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !! You are not allowed to copy this page, Try anywhere else.