खैरागढ़। कुणाल सिंह ठाकुर। खैरागढ़ के राजमहल कमल विलास पैलेस में स्थित वह राधा-कृष्ण मंदिर, जहां कभी रियासत के राजा अपने प्रश्नों का उत्तर खोजने आते थे, अब दशकों बाद फिर से आम जनता के लिए खोल दिया गया है. मंदिर ही नहीं, उसी परिसर में स्थित ऐतिहासिक दरबार हॉल भी अब लोगों के लिए उपलब्ध रहेगा. ये दोनों धरोहरें सालों से बंद थीं, लेकिन इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय (IKSV) की कुलपति डॉ. लवली शर्मा के प्रयासों से अब इस ऐतिहासिक विरासत को फिर आम जनता देख पाएगी और खैरागढ़ रियासत के गौरवशाली इतिहास को महसूस भी कर पाएगी. यह सिर्फ एक मंदिर के कपाट खुलने की कहानी नहीं है, यह उस आस्था की वापसी है, जिसे समय की धूल ने ढक दिया था.

कहा जाता है कि खैरागढ़ रियासत के राजा जब किसी कठिन निर्णय के मोड़ पर होते थे, तो वे इस मंदिर में प्रार्थना करते थे, और भगवान राधा कृष्ण से उन्हें उनके सारे सवालों का जवाब मिल जाते थे. मंदिर की राधा-कृष्ण प्रतिमाएं आज भी उतनी ही जीवंत हैं. काले पत्थर से बनी श्रीकृष्ण और सफेद संगमरमर की राधारानी की प्रतिमा भक्तों के हृदय को छू जाते हैं. करीब पचास साल पहले इस मंदिर से कीमती आभूषणों की चोरी हुई थी. इसके बाद से ही मंदिर को आम दर्शन के लिए बंद कर दिया गया था.

वर्षों तक केवल पुजारी को भीतर प्रवेश की अनुमति थी. वहीं दरबार हॉल, जो कभी राजसी सभाओं का साक्षी रहा, उसे पंद्रह साल से बंद पड़ा था. वहां की दुर्लभ चित्रकला, ऐतिहासिक वस्तुएं अंधेरे में कैद थीं, जब डॉ. लवली शर्मा ने विश्वविद्यालय में कार्यभार संभाला, तो उन्हें परिसर में मौजूद इन ऐतिहासिक संरचनाओं की जानकारी मिली. उन्होंने खुद मंदिर का निरीक्षण किया, सफाई कराने के बाद विधिवत पूजा-अर्चना करवाई. इसके बाद यह निर्णय लिया कि अब मंदिर और दरबार हॉल आम लोगों के लिए खोले जाएंगे. उनका मानना है कि यह धरोहरें सिर्फ विश्वविद्यालय की नहीं, पूरे समाज की संपत्ति हैं.

डॉ. लवली शर्मा ने बताया कि यह बहुत सुंदर मंदिर है, राधा और श्रीकृष्ण भगवान की प्रतिमाएं यहां स्थापित हैं. जब वह इस विश्वविद्यालय में आकर देखा तो उसमें ताला लगा हुआ था. मंदिर के भीतर गई और पूजा की, तो जो दर्शन लाभ मुझे मिला, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, वह अद्वितीय था. उन्होंने कहा कि और जो अनुभूति हुई, उससे मुझे लगा कि इसे सिर्फ मैं ही क्यों अनुभव करूं, जो भी यहां आए, उन्हें भी दर्शन लाभ मिले. मुझे राजपरिवार से जानकारी मिली कि भगवान की जो मूर्तियां हैं, वे ‘टॉकिंग गॉड’ हैं, यानी बात करती हैं, और मैंने खुद जाकर वहां यह अनुभव किया है.”

कमल विलास पैलेस, जो अब इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय है, खुद एक ऐतिहासिक प्रतीक है. 1956 में स्थापित यह एशिया का पहला और इकलौता संगीत और ललित कला विश्वविद्यालय है. लेकिन इसके भीतर छुपा धार्मिक और राजसी इतिहास अब पहली बार सार्वजनिक रूप से खुला है. अब न केवल श्रद्धालु भगवान के दर्शन कर सकते हैं, बल्कि छात्र और पर्यटक भी राजसी विरासत को नजदीक से महसूस कर सकते हैं. आने वाले समय में दरबार हॉल के आसपास के अन्य कमरे भी साफ-सुथरे कर आम लोगों के लिए खोले जाएंगे.

यहाँ के स्थानीय जानकार भागवत शरण सिंह ने बताया कि खैरागढ़ का शुरुआत से ही गौरवशाली इतिहास रहा है. राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती ने इस महल को विश्वविद्यालय के लिए दान किया था. यह महल लगभग 1885 के आसपास का है और पहले कमल विलास पैलेस कहा जाता था. यह राजा कमल नारायण सिंह के समय का स्ट्रक्चर है. मंदिर भी तब का ही है और निश्चित तौर पर खैरागढ़ के इस गौरवशाली मंदिर का पुनः खुलना अपने आप में श्रेयस्कर है. विश्वविद्यालय का यह निर्णय अत्यंत सार्थक है.” डॉ. लवली शर्मा का यह निर्णय एक उदाहरण बन गया है कि जब नेतृत्व में दृष्टि हो और दिल में विरासत के प्रति सम्मान, तो इतिहास फिर से जी उठता है. खैरागढ़ अब न सिर्फ शिक्षा और कला का केंद्र है, बल्कि आस्था और परंपरा का नया संगम भी बन चुका है.

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

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