कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पार्टी नेतृत्व को हुए उच्च-स्तरीय आंतरिक चुनाव में शशि थरूर को मिले महत्व को स्वीकार करना होगा :
थरूर के करीबी लोगों का कहना है कि खरगे पार्टी आलाकमान की ओर से अघोषित उम्मीदवार थे, ऐसे में 1,000 से अधिक वोट हासिल भी खासा महत्व रखता है। इस बात को भूलना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि चुनाव के करीब, प्रतिनिधियों पर खरगे का सपोर्ट करने को लेकर एक तरह से दबाव था। थरूर खेमे की ओर से कई राज्यों में पीसीसी द्वारा बार-बार विरोध करने की बात भी कही गई, और उनके करीबी सूत्रों ने कहा कि 1,072 वोट उन लोगों के हैं जिन्होंने थरूर के पार्टी में बदलाव की बात का समर्थन किया, लेकिन इसे आगे ले जाने के लिए हिम्मत की कमी थी।

नई दिल्ली/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। लंबे इंतजार और कयासों-कवायदों के बाद कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल गया है। पार्टी की कमान अब मल्लिकार्जुन खरगे के हाथों में आ गई है। वहीं चुनाव में शिकस्त खाने वाले शशि थरूर भले ही अध्यक्ष नहीं बन सके लेकिन इस चुनाव से उन्होंने जो कुछ हासिल किया और जो छाप छोड़ी है उसे नकारा नहीं जा सकता। अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में कुल पड़े वोट में उन्हें करीब 12 फीसदी वोट मिले जो दिखाता है कि पार्टी में एक बड़ा वर्ग है जो बदलाव चाहता है।

G-23 के सपोर्ट के बिन लड़े थरूर :
थरूर को जो 1,072 वोट हासिल हुए हैं, वह विद्रोही कहे जाने वाले जी-23 ग्रुप के बड़े नेताओं के लिए भी आश्चर्य की बात हो सकती है, क्योंकि उनको ये वोट उनके समर्थन के बिना आए थे। जी-23 के लिए थरूर को छोड़ना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, और माना जा रहा है कि अगर उन्होंने थरूर को लेकर प्रयास किया होता तो परिणाम बदल भी सकता था। थरूर को मिले वोटों का श्रेय खुद सांसद के अलावा कोई और नहीं ले सकता।

अब शशि थरूर के पास कितनी क्षमता :
क्या पार्टी नेतृत्व अब शशि थरूर को कांग्रेस कार्यसमिति में शामिल करेगा या उन्हें पार्टी में कुछ अहम स्थान देगा ताकि यह संकेत दिया जा सके कि उनके खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं है। खासकर तब जब अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव के दौरान उनकी ओर से की गई शिकायतों के बाद थोड़ी कड़वाहट हो सकती है? क्या पार्टी के लोकसभा नेतृत्व में कोई बदलाव होगा? क्या थरूर लोकसभा में पार्टी नेता के रूप में बंगाल से सांसद अधीर रंजन चौधरी की जगह लेंगे?

फिलहाल कांग्रेस के गलियारों में अटकलों का दौर जारी है। हालांकि चुनाव के दौरान निर्वाचक मंडल की संरचना और संख्या अलग-अलग थी, ऐसे में तब और अब के चुनाव को लेकर कोई तुलना नहीं की जा सकती। शशि थरूर ने 1997 में कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के दौरान सीताराम केसरी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले शरद पवार को मिले वोट से ज्यादा वोट हासिल किए हैं। केसरी ने तब के चुनाव में पवार और एक अन्य दिग्गज राजेश पायलट को हराया था। पवार को 882 और पायलट के 354 के मुकाबले सीताराम केसरी को 6,224 वोट हासिल हुए थे।

चुनाव एकतरफा, लेकिन अहम रहा :
इससे पहले 2000 में आखिरी बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ था, जिसमें सोनिया गांधी के सामने जितेंद्र प्रसाद मैदान में थे। हालांकि यह चुनाव भी एकतरफा साबित हुआ क्योंकि प्रसाद को 94 वोट ही मिले तो सोनिया ने 7,448 वोट हासिल कर बड़ी जीत दर्ज की थी। अन्य उम्मीदवारों की तुलना में, जिन्होंने आलाकमान की ओर से समर्थित उम्मीदवार के खिलाफ चुनौती दी, थरूर एक राजनीतिक नौसिखिया माने जा सकते हैं क्योंकि वह 2009 में कांग्रेस में शामिल हुए। वह तीन बार लोकसभा सांसद जरूर रहे हैं लेकिन पार्टी संगठन में उनके पास काम करने का खासा अनुभव नहीं है। 2017 के बाद से ऑल इंडिया प्रोफेशनल्स कांग्रेस के प्रमुख के रूप में अपने कार्यकाल को छोड़कर उन्हें एक नेता के रूप में देखा गया जिनका दबदबा या तो केरल या फिर दिल्ली के आला हलकों में रहा।

अब पार्टी नेतृत्व पर नजर :
हालांकि, यही उनका सबसे मजबूत पक्ष भी साबित हुआ, जिसमें मुखर शशि थरूर ने प्रचार किया और “थिंक थरूर, थिंक टुमॉरो” टैगलाइन के जरिए अपना प्रचार किया। थरूर का समर्थन करने वाले एकमात्र G-23 नेता, संदीप दीक्षित ने कहा कि वह भारत के करोड़ों युवा, उभरते लोगों के लिए एक आदर्श हो सकते हैं। थरूर ने चुनाव से पहले एक मेनिफेस्टो भी निकाला और संगठन में सुधार के लिए कई विचार रखे। क्या अब उनकी योग्यता को लेकर विचार किया जाएगा? अब देखना होगा कि पार्टी का नया नेतृत्व अब शशि थरूर का इस्तेमाल किस तरह से करता है।

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

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