बिजनौर/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। दिनों दिन महंगे होते जा रहे डीजल और बढ़ते रसायनिक पेस्टिसाइड्स एवं फर्टिलाइजर्स के दामों की वजह से खेती घाटे का सौदा बन कर रह गई है। इसी वजह से जागरूक किसान परंपरागत गन्ना, आलू, गेहूं और धान की खेती छोड़ मुनाफे की खेती की ओर रुख कर करे हैं। यूपी के बिजनौर में जहां कई किसानों ने चंदन की खेती की तरफ रुख किया है, तो वहीं कुछ किसान ड्रैगनफ्रूट, कीवी और आवाकाडो जैसे फलों की बागवानी कर रहे हैं। इसके साथ ही अनेक किसान मेडिसिनल प्लांट्स जैसे अश्वगंधा, एलोवेरा, शतावर और तुलसी की भी खेती कर रहे हैं।
एक ऐसे ही ही किसान हैं बिजनौर के बलीपुर गांव के चंद्रपाल सिंह। ये पिछले दस बर्षो से सफेद और लाल चंदन की खेती कर रहे है। चंद्रपाल सिंह का कहना है कि डेढ़ सौ रुपये में मिलने वाला एक चंदन का पौधा दस से बारह साल बाद लगभग डेढ़ लाख रुपए का बिकता है। बस ढंग से देखभाल और सब्र होना चाहिए। चंदन की दुनियाभर मे बेहद डिमांड है और चंदन की लकड़ी, तेल और बुरादे की खपत के मुकाबले आपूर्ति कम है। इसलिए चंदन की लकड़ी बेहद मंहगी बिकती है। उन्होंने कहा कि बिजनौर के अनेको किसानों ने शुरुआत में कर्नाटक और तमिलनाडु से चंदन की पौध लाकर अपने खेतों में लगाई थी।
3 साल बाद 3 करोड़ रुपए होगी कीमत :
वहीं, चांदपुर के रहने वाले शिवचरण सिंह ने 15 बीघा जमीन में लाल चंदन की पौध लगाई थी जो कि अब 20 फीट तक ऊंचे पेड़ हो गए हैं। शिवचरण सिंह का कहना है कि उनके खेत में 1500 पेड़ लाल चंदन के हैं, जिनकी कीमत दो करोड़ रुपए लग चुकी है। लेकिन वह अभी इस कीमत को और बढ़ाना चाहते हैं। लिहाजा उनका इरादा 3 साल के बाद पेड़ों को बेचने का है। शिवचरण सिंह को उम्मीद है कि उनके पेड़ों की कीमत 3 साल बाद 3 करोड़ रुपए होगी। चंदन के पेड़ों की बागवानी करने के साथ-साथ चंद्रपाल सिंह दूसरे किसानों को तमिलनाडु और कर्नाटक से चंदन की पौध भी लाकर बेचते हैं और गाइड भी करते हैं।
200 से ज्यादा किसानों ने चंदन की खेती बड़े लेवल पर करनी शुरू कर दी है :
बिजनौर के डीएम उमेश मिश्रा ने बताया की बिजनौर में अब तक 200 से ज्यादा किसानों ने चंदन की खेती बड़े लेवल पर करनी शुरू कर दी है। इसके साथ ही कुछ किसान ड्रैगन फ्रूट की बागवानी कर रहे हैं। बिजनौर के बलिया नगली गांव के जयपाल सिंह ने 1 एकड़ जमीन में पर्पल ड्रैगन लगा रखा है, जिससे उन्हें हर साल 5 लाख रुपए की आमदनी हो रही है। थाईलैंड और चाइना का यह फल सौ से डेढ़ सौ रुपए में मिलता है।
बिजनौर का वातावरण इन्हें खासा सूट कर रहा है :
बिजनौर के लगभग 100 से ज्यादा किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। यह फल महंगा जरूर है, लेकिन खेत से ही नगद दामों में बिक जाता है। वहीं, कछ किसान कीवी और आवाकाडो की भी बागबानी कर रहे हैं। आमतौर पर यह सब फल ठंडे इलाकों में पैदा होते हैं। लेकिन उत्तराखंड की पहाड़ी से लगे होने की वजह से बिजनौर का वातावरण इन्हें खासा सूट कर रहा है।
खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है :
गौरतलब यह है कि बिजनौर में अब तक किसान बहुतायत में गन्ने की खेती करते चले आ रहे हैं। इसके अलावा धान, गेहूं और आलू की भी फसलों की परंपरागत खेती ही किसानों का जीविकोपार्जन का एकमात्र साधन है। लेकिन अब चंदन, ड्रैगन फ्रूट, आवाकाडो, कीवी और सहजन की बागवानी करने से किसानों के अच्छे दिन आने की उम्मीद हो चली है। बिजनौर के कई किसान एलोवेरा, अश्वगंधा, सतावर और तुलसी आदि मेडिसिनल प्लांट्स की भी खेती कर रहे हैं, जिनका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाइयों में होने की वजह से बाजार में अच्छी कीमतों पर उपज बिक जाती है। इससे घाटे का धंधा बनती खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।