बरसाना/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। हिंदू धर्म में फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर मनाई जाने वाली होली का बहुत ज्यादा महत्व है। रंग और उमंग से भरे इस पावन की ब्रज मंडल में लगभग 40 दिनों तक धूम रहती है। राधा रानी की नगरी में खेली जाने वाली हर होली का अंदाज निराला होता है। आज बरसाना में लड्डू मार होली खेली जाएगी। रंगों के त्योहार में लड्डू मार होली के क्या मायने हैं, आखिर कैसे हुई लड्डू मार होली की शुरुआत और इसकी क्या खासियत है, जिसे खेलने के लिए न सिर्फ देश से बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां पर पहुंचते हैं, आइए इसे विस्तार से जानते हैं।

कैसे खेली जाती है लड्डू मार होली :
राधारानी की नगरी यानि बरसाना में लड्डू मार होली को खेलने के लिए लोग बड़ी संख्या में पहुंच चुके हैं। इस होली को मनाने के लिए यहां पर बहुत पहले से तैयारी शुरु हो जाती है। लड्डू मार होली को खेलने के लिए कुंतलों मोतीचूर और बेसन के लड्डू तैयार किए जाते हैं। होली के पावन पर्व पर जब फूल और गुलाल संग लड्डू बरसना प्रारंभ होता है तो राधा-कृष्ण की भक्ति में डूबा हर भक्त उसे पाते ही खुद को धन्य मानता है।

कैसे शुरु हुई लड्डू मार होली :
बरसाना में होली खेलने के लिए सबसे पहले राधा रानी के महल से नंदगांव में फाग का निमंत्रण भेजा जाता है। जिसे स्वीकार करने के बाद नंदगांव से भी पुरोहित या फिर कहें पंडा को राधा रानी के महल में स्वीकृति का संदेश देने के लिए भेजा जाता है। कहते हैं कि कृष्ण के काल में जब वह पंडा बरसाना पहुंचा तो उसे खाने के लिए ढेर सारे लड्डू दिए गए, जिसे देखकर वह खुशी के मारे पागल हो जाता है और वह उसे खाने की बजाए होली खेलने लगता है। तब से आज तक बरसाना में लड्डू मार होली की परंपरा चली आ रही है। आज भी इसी परंपरा को एक बार फिर से दोहराते हुए पंडा जब बरसाना पहुंचेगा तो वह वहां पर ढेर सारे लड्डुओं को देखकर नाचने लगेगा और उसी के साथ शुरु होगी लड्डुओं की बरसात, जिसमें भीगने या फिर कहें उस प्रसाद को पाने के लिए लोग वहां पर बड़ी संख्या में पहुंचेंगे।

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

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