बालोद/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। प्रदेश के बालोद जिले के एक और विभाग से अविभागीय काम करने का मामला सामने आया है। इस विभाग में अधिकारी और कर्मचारी इतने सटीक तरीके से काम को अंजाम दे रहें है जैसे किसी को कुछ पता ही न चले और काम भी हो जाए। हम बात कर रहें हैं बालोद जिले के श्रम विभाग की। जी हाँ, इस विभाग के एक कर्मचारी का अपने ही परिवार के सदस्य का श्रमिक कार्ड बनाने का मामला सामने आया है और वह सदस्य और कोई नहीं बल्कि उक्त कर्मचारी की पत्नी है जो की श्रमिक भी नहीं हैं। इतना ही नहीं उक्त कर्मचारी की पत्नी को श्रम विभाग के कुछ योजनाओं के तहत लाभ भी प्राप्त हुआ है, जो की साफ-साफ कागजों में दर्शाया गया है। कहा जाए तो, उक्त कर्मचारी द्वारा पहले अविभागीय तरीके से अपनी पत्नी का श्रमिक कार्ड बनाया गया, फिर श्रम विभाग के योजनाओं के तहत उसे लाभ भी पहुंचाया गया।

इसके साथ ही आपको बता दें की उक्त कर्मचारी का बालोद शहर में खुद का चॉइस सेंटर भी है जिसमे विभिन्न प्रकार के कार्ड बनाने का काम किया जाता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उक्त कर्मचारी के चॉइस सेंटर में अपात्र लोगों का भी श्रमिक कार्ड ज्यादा राशि लेकर बनाया जाता है। अब ऐसे में जिले के श्रम विभाग की चुप्पी भी बड़े अधिकारियों पर शक बढ़ा रही है, क्योंकि श्रम विभाग के किसी बड़े अधिकारी के बिना यह काम संभव नहीं हैं। इस मामले को लेकर श्रम विभाग के सचिव और वरिष्ठ आईएएस अमृत खलखो और भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल के अध्यक्ष सुशील सन्नी अग्रवाल से भी शिकायत की गई, शिकायत के बाद “द मीडिया पॉइंट” की टीम द्वारा अध्यक्ष सन्नी अग्रवाल से बातचीत की गई जिसमे उन्होंने बताया कि शिकायत के बाद उन्होंने इस मामले को लेकर जांच के निर्देश दिए हैं और जांच उपरांत उक्त कर्मचारी के दोषी पाए जाने पर कड़ी कार्यवाही करने के भी निर्देश उन्होंने दिए हैं।

मामला केवल भ्रष्टाचार का नहीं हैं, मामला है उचित न्याय का :
प्रदेश के विभागीय भ्रष्टाचार के चलते बहुत से जरूरतमंद लोग पीछे छूट जाते हैं जिन्हे काम की आवश्यकता है, जो अपने परिवार का पेट पालने वाले एकलौते हैं या जिन्हे काम की अत्यधिक आवश्यकता है। श्रम विभाग के इन योजनाओं का लाभ श्रमिकों को मिलना चाहिए था न की किसी विभागीय कर्मचारी की पत्नी को। इस मामले में उचित न्याय मिलना आवश्यक है क्योंकि किसी और के जगह किसी और को काम दिलाना जो की काम के लायक भी नहीं हैं और उन्हें योजनाओं का लाभ पहुंचाना साफ-साफ कर्मचारी के गलत नीतियों की तरफ इशारा कर रही है जो की अगर रोका न गया तो आगे चलकर और बड़े स्तर पर हो सकता है, जिससे जिन्हें लाभ मिलना चाहिए वे वंचित भी हो सकते हैं।