नई दिल्ली/रायपुर। डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार को अपने एक अहम फैसले में गरीब सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को लेकर अपनी मंजूरी दे दी। देश की सबसे बड़ी अदालत में 5 जजों की बेंच में से 3 जजों ने इसके पक्ष में अपना फैसला सुनाया तो मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित समेत 2 जजों ने इसका विरोध किया। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि जनरल कैटेगरी में ईडब्ल्यूएस कोटा वैध और संवैधानिक है तो जस्टिस भट्ट ने इसे अंसवैधानिक करार दिया।
सुनवाई के दौरान जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने कहा कि उनका फैसला न्यायमूर्ति माहेश्वरी के साथ सहमति में है। उन्होंने कहा कि जनरल कैटेगरी में ईडब्ल्यूएस कोटा वैध और संवैधानिक है। वहीं, जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि ईडब्ल्यूएस संशोधन समानता संहिता का उल्लंघन नहीं करता है। ये संविधान की जरूरी विशेषताओं का उल्लंघन भी नहीं करता है। इसके अलावा 50 प्रतिशत के प्रावधान का भी उल्लंघन नहीं करता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित कहते हैं कि उच्च शिक्षा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के आरक्षण की संवैधानिक वैधता और वित्तीय स्थितियों के आधार पर सार्वजनिक रोजगार के मुद्दों पर चार फैसले दिए जाने हैं। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी संविधान के 103वें संशोधन अधिनियम की वैधता को बरकरार रखते हैं, जो जनरल कैटेगरी को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करता है।
सीजीआई यूयू ललित के साथ जस्टिस माहेश्वरी ने भी EWS आरक्षण को संवैधानिक करार दिया। उन्होंने कहा कि ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता। जस्टिस माहेश्वरी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस पर आरक्षण भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। ईडब्ल्यूएस आरक्षण प्राप्त करने से वर्गों का बहिष्करण और समानता का उल्लंघन नहीं करता है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही करार दिया। पहले पांच जजों की संविधान पीठ ने 4 अलग-अलग फैसले लिखे थे। सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस माहेश्वरी द्वारा एक फैसले का जिक्र किया था, जबकि अन्य सभी तीन जजों ने अपने फैसले खुद लिखे थे।
27 सितंबर को सुरक्षित रखा था फैसला :
शीर्ष अदालत ने पिछली सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था, कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है। शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था। उस पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला भी शामिल थे।