एकादशी व्रत वैसे तो सालभर में कई बार रखे जाते हैं, लेकिन पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है।यह व्रत साल में दो बार आता है – श्रावण मास और पौष मास में।इसे संतान प्राप्ति, संतान की लंबी उम्र और उज्ज्वल भविष्य के लिए फलदायक माना गया है।पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा और व्रत रखने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।पुत्रदा एकादशी व्रत उन दंपतियों के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है जो संतान सुख की कामना करते हैं। इसे करने से न केवल संतान प्राप्ति होती है, बल्कि संतान की दीर्घायु, बुद्धि और सफलता का भी आशीर्वाद मिलता है।
तिथि और समय (2025):
🔹 श्रावण पुत्रदा एकादशी – 7 अगस्त 2025, गुरुवार
🔹 एकादशी तिथि प्रारंभ: 6 अगस्त को रात 9:02 बजे
🔹 एकादशी तिथि समाप्त: 7 अगस्त को रात 11:48 बजे
🔹 पारण (व्रत तोड़ने का समय): 8 अगस्त की सुबह 6:00 से 8:30 बजे तक (स्मार्त परंपरा अनुसार)
पूजन विधि:
- प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें – संतान सुख की प्राप्ति या संतति के कल्याण हेतु।
- व्रत में पूरे दिन निर्जल या फलाहार व्रत रखें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को पीले वस्त्र पहनाकर, पीले फूल, चंदन, तुलसी, और मिठाई से पूजा करें।
- भगवान विष्णु का “विष्णु सहस्त्रनाम” का पाठ करें।
- रात्रि में जागरण कर भगवान विष्णु की भक्ति करें।
- द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें, फिर पारण करें।
पौराणिक कथा (व्रत कथा):
प्राचीन समय में महीष्मती नगरी में सुखदेव नामक राजा अपनी पत्नी के साथ संतान प्राप्ति की चिंता में दिन-रात दुखी रहते थे। वर्षों तक प्रयास के बाद भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला। एक दिन राजा जंगल में भ्रमण कर रहे थे, तभी उन्होंने मुनियों से पुत्रदा एकादशी व्रत के बारे में जाना। मुनियों ने उन्हें बताया कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से भगवान विष्णु संतान सुख प्रदान करते हैं। राजा ने यह व्रत श्रद्धा से किया और कुछ समय बाद रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा बना।
व्रत के लाभ:
- निःसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति
- संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य
- पारिवारिक सौहार्द और सुख-शांति
- भगवान विष्णु की कृपा से पुण्य की प्राप्ति