नई दिल्ली/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। नए संसद भवन में लगा अखंड भारत का एक भित्ति चित्र बीते दो दिनों से हलचल मचाए हुए है। केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसे शेयर किया और लिखा-संकल्प स्पष्ट है। भाजपा की अनेक यूनिट्स और पदाधिकारियों ने भी इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया। देखते-देखते यह वायरल हो गया। पर, क्या भारत का ऐसा कोई प्लान है? हमारा नियम-कानून-संकल्प, इस मसले पर क्या कहते हैं?

आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में बना भारत का यह पहला संसद भवन है, जिसमें सीमेंट, गारा, पत्थर, लकड़ी, पसीना और पैसा सब हिंदुस्तान और हिंदुस्तानियों का लगा है। पुराना संसद भवन अंग्रेजी राज में बना था। लोकतंत्र के सबसे बड़े इस मंदिर में भारत, भारतीय लोग और भारतीयता से जुड़ी अनेक चीजें सँजोई गयी हैं और यह होना भी चाहिए। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। हमें और आने वाली पीढ़ियों को अपने अतीत की जानकारी होनी भी चाहिए। चाहे पूर्वज हों या भौगोलिक सीमाएं, भविष्य प्लान करना आसान हो जाता है। ऐसी चीजें हमें गर्व करने का अवसर देती हैं। सीखने के मौके भी मिलते हैं। संभवतः इसी गरज से हमारे नीति-नियंताओं ने अखंड भारत के भित्ति चित्र समेत अनेक चीजें इस मंदिर में संजोई है।

क्या हम अखंड भारत की ओर बढ़ रहे?
असली सवाल यह है कि क्या वाकई हम अखंड भारत की ओर बढ़ रहे हैं? जैसा कि केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने लिखा है कि संकल्प स्पष्ट है। समय-समय पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समेत कई अन्य संगठनों की ओर से अखंड भारत की बातें उठाई जाती हैं, लेकिन कोई भी जिम्मेदार पदाधिकारी कभी भारत का हिस्सा और आज दूसरे देश के रूप में दुनिया के नक्शे पर मौजूद, को पुनः भारत में मिलाने की बात नहीं करते। यह एक अवधारणा है। जिस तरह से भारत पूरी दुनिया के दिल और दिमाग पर छाया हुआ है, यह भी अखंड भारत का ही स्वरूप है। आज देश और दुनिया काफी आगे निकल चुके हैं।

नित तरक्की के नए रास्ते खुल रहे हैं। हमारी तकनीक पूरी दुनिया में जा रही है। पूरी दुनिया से हम भी विचारों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। आमजन को बहलाने के लिए तो ठीक, लोगों की भावनाओं से खेलने के लिए भी एक बार ठीक माना जा सकता है। भौगोलिक विस्तार, पर इसका आज सच से कोई लेना-देना नहीं है। आज जब भी केन्द्रीय मंत्री गण शपथ लेते हैं तो बोलते हैं-मैं भारत की एकता, अखंडता को अक्षुण बनाए रखूँगा।

हम हमला नहीं करेंगे, लेकिन हर हिमाकत का मजबूती से जवाब देंगे :
आजाद भारत का कानून कहता है कि हम किसी देश पर खुद से हमला नहीं करेंगे। हाँ, अगर किसी ने यह हिमाकत की तो उसे दो कदम आगे बढ़कर मुँहतोड़ जवाब देंगे। भारत युद्ध का समर्थन नहीं करता। रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में इसे आसानी से समझा जा सकता है। अमेरिका समेत नाटो देश युद्ध के लिए यूक्रेन को साजो-सामान की लगातार आपूर्ति कर रहे हैं तब भी भारत अपनी संस्कृति के अनुसार दोनों ही देशों से न केवल परस्पर संबंध बनाए हुए है बल्कि युद्ध को रोकने की वकालत करता आ रहा है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में पूरी दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। वह किसी भी सूरत में इसे छोड़ना नहीं चाहेगा। यहाँ अभी भी स्वस्थ लोकतंत्र है। देश का सामान्य सा आदमी भी पीएम-सीएम पर सवाल उठा देता है। ऐसा उदाहरण दुनिया में बहुत कम देखने को मिलता है।

तय जान लेना चाहिए कि अखंड भारत एक सांस्कृतिक अवधारणा है। एक वैचारिक प्रवाह है। हमें इसे बनाकर भी रखना है। कभी भारत का हिस्सा रहे छोटे से छोटे देश भी अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ जीना चाहते हैं। तबाह हो चुका श्रीलंका हो या भूटान, नेपाल, म्यांमार हो या कंबोडिया या फिर कोई और द्वीपीय देश, कोई भी आज अपनी पहचान नहीं खोना चाहेगा। अपने सांस्कृतिक प्रवाह को बनाए रखने के लिए ही भारत आज भी पाकिस्तान को छोड़कर सभी छोटे-बड़े पड़ोसियों की मदद को हरदम आगे आता रहा है।

भौगोलिक से ज्यादा जरूरी सांस्कृतिक सीमा विस्तार :
दुनिया के जिस भी हिस्से में भारतीय बड़ी संख्या में हैं, भारत उन देशों के साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार रखता है। यह भी अखंड भारत की महत्वपूर्ण पहचान है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान को छोड़ सभी से हमारे मधुर रिश्ते हैं। इसलिए जिन लोगों को लगता है कि भारत अपनी भौगोलिक सीमा का विस्तार करने जा रहा है, वे उत्साही हैं, नादान हैं, आज भौगोलिक सीमा विस्तार से ज्यादा जरूरी है सांस्कृतिक सीमा विस्तार की, जो भारत और भारतीय बहुत मजबूती से कर रहे हैं।

ऐतिहासिक तथ्य यही है कि तिब्बत, वियतनाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापूर, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अफगानिस्तान भारत का हिस्सा रहे हैं। पौराणिक रूप से पूरी धरती पर सात द्वीप जंबू, प्लाक्ष, शाल्म, कुश, पुष्कर, शाक और क्रौंच है। भारत जंबू द्वीप का हिस्सा है। जंबू द्वीप के नौ खंड क्रमशः केतुमाल, कुरु, नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्य, हिरण्यमय और भद्राश्व हैं। इसी में नाभि खंड को बाद में भारत वर्ष कहा गया।

हमारी प्रतिभा का डंका जहां तक सुनाई दे, वही अखंड भारत :
कहा जाता है कि जंबूद्वीप के राजा अग्नीध्र थे। उनके बेटे थे नाभि। नाभि के बेटे ऋषभदेव और उनके बेटे हुए चक्रवर्ती सम्राट भरत, जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। बाद में सम्राट चन्द्रगुप्त ने भी अखंड भारत में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस तरह यह कहा जा सकता है कि स्वप्न देखा जाना चाहिए। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम बड़े सपने देखने को प्रेरित करते थे।

आज का अखंड भारत यही है कि हमारी प्रतिभा, मेधा का डंका जहाँ तक सुनाई देगा, हमारे इंजीनियर, वैज्ञानिक जिन-जिन देशों की तरक्की में अपनी भूमिका अदा करेंगे, सांस्कृतिक रूप से वह सब अखंड भारत का हिस्सा होगा। चूँकि, भौगोलिक रूप से सीमा विस्तार अब संभव नहीं है। ऐसे में सांस्कृतिक विस्तार भी एक महत्वपूर्ण तथ्य के रूप में स्थापित माना जाएगा। इस बात से किसी का इनकार नहीं है कि दुनिया के अनेक विकसित देशों की तरक्की में भारत और भारत वंशियों का बड़ा योगदान है।

By Kunaal Singh Thakur

KUNAL SINGH THAKUR HEAD (प्रधान संपादक)

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