उज्जैन/रायपुर। कुणाल सिंह ठाकुर। धार्मिक नगरी उज्जैन में वैसे तो द्वादश ज्योतिलिंर्गों में से एक विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर का मंदिर है, जिनके बारे में मान्यता है कि वे अकाल मृत्यु के भय को समाप्त कर देते हैं, जिसके लिए प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन करने उज्जैन आते हैं, लेकिन इस धार्मिक नगरी मे भगवान शिव का एक ऐसा चमत्कारी मंदिर भी है जहां पर भक्त की रक्षा करने के लिए भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने यमराज को जंजीरो से बांध दिया। भगवान शिव के इसी चमत्कार के कारण वर्षभर जन्मदिन और विवाह वर्षगांठ पर श्रद्धालुजन मंदिर मे विशेष पूजा अर्चना कर आयु और आरोग्यता की कामना करते हैं।
यहां ऋषि मार्कण्डेय ने मृत्यु पर की थी विजय प्राप्त :
विष्णुसागर के तट पर चोरियासी महादेव मे 36 वा स्थान रखने वाले भगवान श्री मार्कण्डेश्वर महादेव का 5000 वर्षों पुराना मंदिर है। जो कि सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल का माना जाता है। मंदिर के पुजारी पं. दीप मेहता ने बताया कि यह वही मंदिर है जहां ऋषि मार्कण्डेय ने काल को परास्त कर मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी और वे यही पर चिरंजीवी हुए थे। पं. दीप मेहता ने बताया कि पद्म पुराण में इस बात का उल्लेख है कि ऋषि मृकंड मुनी ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या कर पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त किया था, लेकिन उनके पुत्र ऋषि मार्कण्डेय की आयु अल्प थी जिसके कारण ऋषि मृकंड पुत्र ऋषि मार्कण्डेय की अल्प आयु को लेकर चिंतित रहने लगे।
एक दिन पुत्र के निवेदन पर उन्होने सारा वृतांत सुनाया। इसके बाद मार्कण्डेय ने आयु प्राप्त करने तथा चिरंजीवी होने की कामना से अवंतिका तीर्थ महाकाल वन में इसी मंदिर मे भगवान शिव की घोर तपस्या की और जब वह 12 वर्ष के हुए और उन्हें यमराज अपने साथ लेने के लिए आए तो ऋषि मार्कण्डेय ने भगवान शिव की प्रतिमा को दोनों हाथों से पकड़ लिया था।
महादेव ने यमराज को मंदिर में जंजीरों से बांध दिया था :
यमराज द्वारा मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिये फेंके गए पाश के कारण भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने यमराज को मंदिर में जंजीरों से बांध दिया था। साथ ही ऋषि मार्कण्डेय को वरदान दिया था कि अब आपकी आयु 12 कल्प की रहेगी। आशीर्वाद के बाद ऋषि मार्कण्डेय अष्ट चिरंजीवी हो गए। पुजारी पं. दीप मेहता ने बताया कि वैसे तो वर्ष भर ही मंदिर में अनेक आयोजन होते हैं, लेकिन श्रावण मास में मार्कण्डेश्वर महादेव मंदिर के पट रात 3 बजे से ही खुल जाते हैं।
रात्रि को भगवान का विशेष पूजन अर्चन कपूर आरती के बाद भगवान का पंचामृत अभिषेक पूजन किया जाता है। मंगला आरती के बाद भक्त दिन भर भगवान का अभिषेक पूजन करते हैं। इस पूजन अर्चन के बाद शाम 4 बजे से पुन: भगवान का पंचामृत अभिषेक पूजन, श्रृंगार व सांध्य आरती का क्रम अनवरत जारी रहता है।
क्यों दक्षिणमुखी है शिवलिंग, क्या है मान्यता :
मंदिर के पुजारी पं.दीप मेहता ने बताया कि मार्कण्डेश्वर ऋषि ने यहां काल को परास्त कर मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी और चिरंजिवि हुए थे। इस मंदिर में काल अर्थात यमराज बंधन में बंधे हुए हैं। मंदिर में विराजित सिद्ध शिवलिंग दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए हैं। शिवलिंग पर प्राकृतिक रूप से एक आंख भी उत्कीर्ण है। दक्षिण काल की दिशा है। मान्यता है भक्तों की रक्षा के लिए महाकाल काल को देख रहे हैं। मार्कण्डेश्वर महादेव की पूजा अर्चना करने से भक्तों को आयु आरोग्य की प्राप्ति होती है।